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प्रकरण - बारहवाँ
लौंकाशाह के नया मत निकालने का कारण ।
जब एक धारा प्रवाही मीठे और साफ जल की नदी बह रही है तब उसके किनारे अलग उकेरी (कुँआ ) खोदना कुछ न कुछ कारण जरूर रखता है । या तो यह कारण हो कि नदी के जल से उकेरी का जल स्वाद में अधिक मीठा और ठंडा है या उसे खोद उसकी धूल से नदी के कुछ हिस्से को पाटने की जरूरत है । पर यह सब मनोदशा के विकार हो हैं । क्योंकि उकेरी में जो पानी आता है वह भी तो नदी ही से श्राता है ऐसी हालत में नदी का पानी खराब, और उकेरी का पानी उससे अच्छा हो यह असंभव है । तथा उकेरी खोद कर नदी को पाटने की ( नावुद करने की ) इच्छा है यह भी निज के पतन काही कारण है क्योंकि उकेरी के खोदने से जब नदी पट जायगी तो उकेरी तो स्वयं पटी हुई है । अब यदि यह कहा जाय कि नदी का पानी गेंदला हो खराब होजाय इस हालत में उकेरी खोदना लाभप्रद हो सकता है, यह भी कहना न्यायतः ठीक नहीं, क्योंकि नयी उकेरी खोदने की बजाय तो नदी का पानी ही स्वच्छ करना विशेष लाभकारी है । क्योंकि नदी का हृदय विशाल होता है और उकेरियों का हृदय संकीर्ण रहता है। नदी सर्व साधारण एवं चराचर प्राणियों का आधार एवं उपकार तथा विश्वास का पात्र है । और उकेरियों चन्द व्यक्तियों की सम्पत्ति
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