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क्या० लौं० ३२ सूत्र लिखे थे
सूत्र की भी नकल की हो इसका उल्लेख किया है । ऐसी दशा में वा. मो. शाह, स्वामी संतबालजी, अमोलखर्षिजी आदि की पूर्व कल्पना स्वतः संदिग्ध सिद्ध है। क्योंकि मणिलालजी ने जो कुछ लिखा है उसको अन्य प्रमाण भी पुष्ट करते हैं। यथास्थानक० साधु जेठमलजी ने वि० सं० १८६५ में समकितसार नाम का जो ग्रन्थ बनाया है, उसमें भी लौंकाशाह का जीवन लिख, तत्सम्बन्धी कई प्राचीन चौपाईयें उद्धृत की हैं. पर उनमें भी यह कहीं नहीं लिखा है कि लोकाशाह ने ३२ सूत्रों की एक एक या दो दो नकलें की थीं। इनसे आगे चलकर वि० सं० १५७८ में लौंका गच्छीय यति भानुचंद्र ने दया धर्म चौपाई लिख लौकाशाह का पूरा जीवन चरित्र वर्णन किया है,पर ३२ सूत्रों की नकल की तो कहीं गन्ध तक भी नहीं मिलती है । जब लौंकाशाह के ४० वर्ष के पश्चात् का हो यह प्रमाण है तो जरूर मान्य है, तद्वत् वि० सं० १६३६ का स्वामी मणिलालजी वाला, और वि० सं० १८६५ का स्वामी जेठमलजी का लिखा प्रमाण भो अवश्य विश्वसनीय है। और उपर्युक्त तीनों प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि लौकाशाह ने ३२ सूत्र तो क्या पर एक भो सूत्र नहीं लिखा। फिर समझ में नहीं आता कि वा. मो. . शाह, संतबाल जी, और अमोलखर्षिजी ने यह नयी कल्पना कहाँ से ढूंढ निकाली है ? और इसके लिए उनके पास क्या प्रमाण है ? यदि एक भी प्रमाण नहीं तो इस बीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक युग में ऐसे स्वकल्पित ढकोसले को कुछ भी कीमत शेष नहीं रहती है। स्थानक मार्गी समाज को चाहिए कि वे पहिले अपने घर में यह निपटारा करलें कि संतबालजी
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