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प्रकरण नौवा
यह भी सिद्ध है कि लौंकाशाह ३२ सूत्रों को लिखना तो क्या पर एकाध सूत्र को मानता तक भी नहीं था । इसके नहीं लिखने का और नहीं मानने का एक अन्य भी कारण है कि "जैनाssगम मूल तो अर्ध मागधी में और उन पर टीका संस्कृत में हैं" अतः लोकाशाह, स्वतः, इन भाषाओं की अनभिज्ञता के कारण इन आगम सूत्रों से पराङ्मुख था। लौकाशाह के लिखने मानने की बात तो दूर रही, किन्तु उस के पास अन्य लिखित भी सूत्र प्रति नहीं थी, यह बात लोकाशाहका जीवन वि० सं० १६३६ के लेख से सिद्ध होती है। उसमें लिखा है कि लौंकाशाह ने बादशाह की नौकरी छोड़ कर तत्क्षण ही यति दीक्षा ली।
अब लौकाशाह के अनुयायियों में ३२ सूत्रों के विषय में जो मान्यता है उसका भी कारण हम प्रदर्शित कर देते हैं । कहा जाता है कि तपागच्छवालों ने जब पावचंद्रसूरि को गच्छ से अलग कर दिया, उस समय लोकाशाह तो विद्यमान नहीं था, पर लौंकाशाह के अनुयायियों को यह एक बड़ा भारी सुअवसर हाथ लगा । यह तो सभी जानते हैं कि दो जनों की फूट होने पर तीसरा मनुष्य स्वस्वार्थ बना लेता है" इसी प्रकार लोकों के अनुयायियों ने श्री पार्श्वचंद्र सरि से जाकर प्रार्थना की कि आप जैन सूत्रों का अर्थ गुर्जर भाषा में करदें तो हम लोगों पर बड़ा भारी उपकार होगा, पाचचंद्र सूरि को यह पता था कि ये जैन धर्म के विरोधी हैं, अतः सूरिजी ने उन लौंकों से तीन शतें तय की। (१) तो यह कि जैन मन्दिर मूत्तियों की निंदा नहीं करना । (२)री यह कि जैन मन्दिर में जाकर जिन प्रतिमा के दर्शन हमेशा करना । (३) री यह कि पूर्वाचार्यों
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