________________
प्रकरण दूसरा
स्थानकमार्गी साधु मणिलालजी ने पूर्वोक्त दो पत्रों पर विश्वास कर लौंकाशाह का जीवन लिख “प्रभुवीर पटावली". नामक पुस्तक में छपवा, तो दिया पर आपके इस कल्पित लेख: की नींव कितनी कमजोर है इस पर तनिक भी विचार नहीं किया। जीवन चरित्र के मूलाधार जब ये दोनों पत्र भी स्वयं मूंठे सिद्ध होते हैं तो उनके आधार पर रचित यह जीवन वृत्त तो स्वतः झूठा साबित होगया । दूर जाने की बात नहीं आपके इस हवाई किले को तो स्वयं संतबालजी ने भी विध्वंस कर दिया। इतने पर भी आप को इन पत्रों की सत्यता पर विश्वास हो तो संतवालजी की लिखी “धर्मप्राण लौंकाशाह" नाम की. लेखमाला को सप्रमाण असत्य सिद्ध करने का साहस करें।
स्थानकमार्गी साधु मणिलालजी का “जैन धर्म नो संक्षिप्त इतिहास"" के लिये अखिल भारतवर्षीय स्थानकवासी जैन श्वे० स्था. कान्फरेन्स ने तारीख १०.५-१९३६ रविवार की जनरल वार्षिक बैठक में-अहमदाबाद में १० वा प्रस्ताव पास किया है कि
फिशियल इतिहास के अभाव से अपूर्ण अहेवाल छपे हों वे भविष्य में इतिहास बन जाते हैं। साक्षात् देखने वाले तो चले जाते हैं, और संभाल से तैयार किया हुवा साहित्य सत्य माना जाता है। “अजमेर सम्मेलन यात्री" और "जैन धर्म का प्राचीन संक्षिप्त इतिहास" में अजमेर साधु सम्मेलन का रिपोर्ट अपूर्ण है । इतना नहीं कितनाक भाग उल्टे. रास्ता पर लेजाने वाला है। ये पुस्तक अपने प्रस्ताव अनुसार प्रमाणित भी नहीं । इस प्रस्ताव से “जैन धर्म नो संक्षिप्त इतिहास" की कितनी, प्रमाणिकता है, सो स्पष्ट हो जाता है।
... ता. १७.५.३६ जैन प्रकाश पृ. ३४२ :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org