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लौंकाशाह का समय वि० सं० १४८२ में हुआ था । जिस प्रकार लौकाशाह के जन्म संवत् में मतभेद है इसी प्रकार देहान्त के समय में भी मतभेद है । इस मतभेद के होने का कारण यही होसकता है कि लोकाशाह के समकालीन किसी भी लौका-अनुयायी ने इनका जीवन चरित्र नहीं लिखा । फिर भी लौका-यति भानुचन्द्रजी की लिखी चौपाई जरूर मान्य समझी जा सकती है क्योंकि ये स्वयं लौकाशाह के अनुयायी और इन्होंने लौकाशाह के इहलीला संवरण के बाद केवल ४० वर्षों में ही इस चौपाई को लिखा था । अतः लौंकाशाह का जन्म संवत् वि० सं० १४८२ के पास पास ही मानना युक्ति और प्रमाणों से संगत है। जिस प्रकार लोकाशाह का जन्म संवत् विचार वीथी में भूला हुआ भटक रहा है तद्वत् जन्म स्थान का भी पूरा निर्णय अभी तक नहीं हो सका है, इसका विवेचन पाठक छट्टे प्रकरण में पढ़ें।
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