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प्रकरण भाठवाँ
आदि कई उपमाएँ लगाते हैं। जिन्हें स्थानकमार्गी समाज, धर्मनाशक, दयादान, उत्थापक, मिथ्यात्वी, कुलिंगी, पाखण्डी, समझते हैं । परन्तु यही हाल लौकाशाह और लवजी धर्मसिंहनी का है। सत्य बात तो यह है कि ऐसे निरर्थक मिथ्या विशेषणों की कल्पना करने के बजाय, किसी व्यक्ति के थोड़े भी हो पर प्रमाणिक गुणविशेष, यदि जनता के सामने रखे जायें तो उनकी विशेष कीमत हो सकती है। अन्यथा मिथ्या गुण वर्णित व्यक्ति तो होली के बादशाह की तरह केवल हास्यभाजन ही समझा जाता है। ___ उक्त विवेचन से यह पूर्णतया स्पष्ट होता है कि लौकाशाह का शास्त्रज्ञान कुछ था ही नहीं, क्योंकि इसके लिए कोई भी पुष्ट प्रमाण हमें अद्याऽवधि नहीं मिला है । जो कुछ मिलता है वह सामान्य लौकिक ज्ञान का ही द्योतक है । स्थानक मार्गियों ने जो इनके विषय में बढ़ा चढ़ा के लिखा है, यह इनकी मिथ्या कल्पना एवं स्वकीय वाक्प्रपञ्च का विस्तार है । तथा जो बात उनके ३२ सूत्रों की नकल करने की है, वह भी खपुष्पवत् झूठी है, जिसका पूरा खुलासा आप नवें प्रकरण में पढ़ें।
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