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लोकाशाह का व्यवसाय
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स्था० साधु जेठमलजी लिखते हैं: - वि० सं० १८६५ संवत पनरासौ एकत्रीमें गुजरात देशे अहमदाबाद नगर ने विषय ओसवाल वंशी सा० लुंको
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वसे ते नाणावट नो धंधो करे ।"
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समकित सार पृ. ७.
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स्थानक साधु मणिलालजी वि० सं० १६६२ में लिखते हैं:X X मां केटलाक धीर धार नो व्याज वटावनो अने अनाज विगेरे नो व्यापार करता ने संतोष थी जीवन गुजारता x X x ( यह तो लौंकाशाह के पिता का व्यवसाय था ) x x लौंकचन्द्र ( लौकाशाह ) ने
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पिताए दुकान नो सर्व कारभार सोंप्यो ठीक २ द्रव्योपार्जन करता अने कुटुम्ब Xx ★ "
हता x
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X x ( लाकाशाह ) नो निर्वाह चलावता
प्रभुवीर पटावली पृष्ट १६५
स्वामीजी बतलाते हैं कि लौंकाशाह के पिता का व्यापार किसानों को ब्याज पर धन धान आदि देना था । जब लौंकाशाह कालन हुआ तब दुकान का सब व्यापार लौंकाशाह को सौंप दिया और लौंकाशाह उस दुकान का धंधा कर अपने कुटुम्ब का ठीक निर्वाह करता था, बात भी ठीक है, ऐसे छोटे से गाँवों में सिवाय
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