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प्रकरण सातवाँ
मत निकाला है वह श्रेष्ठ और सर्व मान्य है जिसमें स्वामी भीखमजी भी सामिल आ सके । इत्यादि, कुछ न कुछ लिखने पर ही आपकी लौंकाशाह के प्रति की हुई भक्ति की क़ीमत हो सकती है । अन्यथा यह तो प्रशंसा नहीं प्रत्युत प्रशंसा की ओट ले, लौंकाशाद की हँसी करना है।
वस्तुतः लौंकाशाह एक दशा श्रीमाली बणिया तथा साधारण गृहस्थ और लिखने का काम कर अपनी जीविका चलाने वाला लहिया था । जिस तरह लौंकाशाह के पास लौकिक साधनों की पूर्ति करने को धन का अभाव था, वैसे ही इह लौकिक और पारलौकिक साधनों की पूर्ति करने वाला ज्ञान धन भी कम था । जिसको आप अगले प्रकरण में पढ़ने का प्रयत्न करें ।
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