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ह का व्यवसाय
x x x हूँ उपदेशक नथी, पण साधारण लहीयो छ x *"
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x x x अने मारी जेवा गरीब वाणियानी शक्ति पण शुं x x ? "स्थान. साधु संतबालजी की लेख माला जैन प्रकाश ४-८.३५ पृष्ठ ४५,
लो, स्वयं लौंकाशाह संतबालजी द्वारा कहा रहे हैं कि मैं उपदेशक नहीं परन्तु एक साधारण लहिया (लेखक) हूँ, और मेरे जैसे गरीब बणिये की क्या शक्ति, कि मैं कुछ कर सकूँ। ऐसी दशा में,वाड़ी. मोती.शाह, संतबालजी, मणिलालजी, अमोलखर्षिजी, श्रादि स्थानकमार्गी लोग विचारे लौकाशाह पर क्यों पृथा वाग् प्रपन रच बोमा लाद रहे हैं । याद रक्खो कभी सचमुच स्वयं लौकाशाह तुम्हारे सामने आकर सवाल कर बैठे किक्यों रे!साधुओं ! मैंने कब अनार्य मुस्लिम बादशाह की नौकरी की थी ? और कब मैंने मनुष्यों को उपदेश देकर महोपदेशक का समगा लटकाया था ? बोलिये ! इस हालत में उनका प्रतीकार करने को आपके पास क्या पुष्ट प्रमाण है ?
यदि मत प्रवर्तक लौंकाशाह को मानकर ही उनके लिए इतने प्रशंसात्मक चाटुवाद कहे और लिखे जाते हैं तो, लौकाशाह के मत से अलग होकर नया मत निकालने वालों के लिए भी तो कुछ लिखना चाहिए था कि उन्होंने लौकाशाह से विरुद्ध होकर बड़ी भारी बहादुरी की, उन्होंने लौका-मत से पृथक् जो
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