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काशाह का व्यवसाय
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* लोकाशाह उपासरे पुस्तकें लिखते थे । उसकी लिखाई के पैसे दे देने पर भी साढ़ा सत्रह
दोड़ा शेष रहने से आपस में तकरार हुई।"
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वीरवंशावली जै० सा० सं० वर्ष ३-४-४९
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उपर्युक्त प्रमाणों से यह सिद्ध हो गया कि लौंकाशाह, एक धनी मानी खेठ नहीं किन्तु साधारण स्थिति का बणिया था, इसका व्यवसाय भी साधारण ही था । परन्तु हमारे नई रोशनी वाले स्थानिकमार्गियों को यह कब अच्छा लगे कि, उनके आद्य धर्मप्रवर्तक, धर्मगुरु एक सामान्य स्थिति के साबित हों; अतः स्था० साधु मणिलालजी ने इनके बारे में जो स्फुट उद्गार दबती जबान से निकाले हैं वे पाठकों के अवलोकनार्थ यहाँ अंकित करते हैं ।
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X X X तेलहीया हता एम असंबद्ध अनुमान आप केम करी शकिये ? बीजुं कारण पोताना उपदेश थीं लाखो मनुष्यो ने सारंभी प्रवृत्तिओनी मान्यता फेरवी शुद्ध दयामय जैन धर्म नो प्रकाश कर्यो, श्रेतुं प्रबल कार्य अने महाभारत कार्य एक लहीया थी थई शके ते वात मानवा मां वे खरी ?
प्रभुवीर पटवली पृष्ठ १६०
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