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प्रकरण सातवाँ
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इस व्यापार के अन्य क्या व्यापार हो सकता है। परन्तु जब एसे छोटे गाँव में शायद इस क्षुद्र व्यापार से अपना निर्वाह ठीक चलता नहीं देखा हो तो अरहटवाड़ा का त्याग कर अहमदाबाद गए हों, और वहाँ नाणावट का धंधा किया हो तो यह संभव ही है, क्योंकि एक साधारण निर्धन गृहस्थ बड़ा व्यपार कैसे कर सकता है। यह तो हुई स्वामी मणिलालजी की बात, अब आगे चल कर देखें कि साधु संतबालजी लौंकाशाह के विषय में अपने क्या उद्गार प्रकट करते हैं । आप लौंकाशाह को अहमदाबाद का बड़ा भारी साहूकार बतलाते हैं । ( देखो धर्मप्राण लौकाशाह की लेखमाला) संभव है इन दोनों महाशयों के नायक लौकाशाह अलग २ होंगे तभी तो वे वैसा और ये ऐसा लिखते हैं पाठक जरा ध्यान से देखें । हालौँ कि इन लौकाशाह के माता पिता के नामों में दोनों का एक मत होने पर भी जन्मस्थान और व्यवसाय के विषय में एक मत नहीं है । अब सवाल यह पैदा होता है कि धर्मप्राण लौंकाशाह हुए हैं वह संतबालजीवाले हैं या मणिलालजी वाले ?
जब वाड़ीलाल मोती० शाह अपनी ऐतिहासिक नोंध में लौकाशाह के लिए और ही लिखते हैं कि लौंकाशाह बड़ा भारी साहूकार था, तब स्वामी नागेन्द्रचंद्रजी द्वारा प्राप्त पटावली में लिखा हुआ मिलता है कि:
"लौको महतो तिहाँ वसै, अक्षर सुन्दर तास । आगम लिखवा तूंपिया, लिखे शुद्ध सुविलास ॥
ऐतिहासिक नोंथ पृष्ठ ११६
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