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प्रकरण सातवाँ
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"लोकाशाह लींबड़ी थी अहमदाबाद आव्या त्यां केटलाक वर्षों सुधी नौकरी करी पण पोतानो स्वभाव अति उग्र होवा थी, त्यांथी छटा पड़ी अने नाणावटी नो धंधो आदर्यो, पण त्यां एकदा महा अनर्थ जोई लौकाशाह ने लागी अाव्यु के मारे एक जीवड़ा माटे श्रेटलो बधो अनर्थ शं करवा करवो जोईये” इत्यादि।
हस्तलिखित लौकाशाह का जीवन
यति कान्तिविजयजी वि० सं० १६३६ में लिखते हैं:
'पोताना वतन थी अहमदाबाद प्रावी नाणावटी नो धंधो करता हता।"
प्रभुवीर पटावली पृष्ट १६१
x (१) लौ० यति केशवजी २४ कडीका सिलोका में ज्ञान समुद्र नी सेवा करता, भरणी गुणी लहिउ बन्यो तव त्यां। द्रम्म कमाणी श्रुतनी भक्ति, आगम लिखई मनमा शंकई ॥१२॥
श्राप लिखते हैं कि ज्ञानसमुद्र (ज्ञानसागर) सूरि के पास लिख पढ़ (अक्षर ज्ञान प्राप्त कर ) के लेखक (लहियो) हुआ
आगम लिखने में एक तो द्रव्य प्राप्ती दूसरी ज्ञान की भक्ति यह लौकाशाह का व्यवसाय था आगम लिखते २ लौकाशाह को शंकाए हुई वह लौंकाशाह के सिद्धान्त में बतलाई जायगी।
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