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प्रकरण छहा
४२ सकता है। क्योंकि ऐसी २ असत्य घोषणाएँ स्वार्थ साधनार्थ घोषित करना ऐसे लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है।
सचमुच इन्होंने (संतबालजी ने ) यदि ऐसी घोषणा करदी तो फिर, मणिलालजी अपने प्राप्त पत्रों की इज्जत रक्षा कैसे करेंगे ? इसका पूरा उत्तर अभी भविष्य के गर्भ में है। उपर्युक्त विवेचन से सुज्ञ पाठक यह तो विचार सकते हैं कि लौंकाशाह का जन्मस्थान अन्य स्थानों को न मान कर लीबड़ी को मानना ही अधिक युक्तियुक्त और संगत है, जिनका कि यथा बुद्धि पूरा खुलासा हम ऊपर कर आए हैं। अब यह बतायेंगे कि लौंकाशाह का व्यवसाय क्या था, इसे पाठक सातवें प्रकरण में देखें ।
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