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प्रकरण पांच
संवत् पनर नु त्रिसई कलि, प्रकट्यो वेषधार समकलि"
सिद्धान्त सार चौपाई। आपका मत है कि वि० सं० १५०८ में तो लौंकाशाह ने अपनी पुकार उठाई, और वि० सं० १५३० में भाणा ने विना गुरु वेष धारण किया।
(३) मुनि श्री वीका “वीर जिणेसर मुक्ति गया, सइ ओगणीस वरस जब थया, पणयालीस अधिक माजनई,प्रागवाट पहिलई साजनई"
असूत्र निराकरण बत्तीसी। आपका मत है कि लोकाशाह का जन्म वीरात् १९४५ अर्थात् वि० सं० १४७५ में लघु. पोरवाल कुल में हुआ ।
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(४) लौका ० यति भानुचंद (वि० सं० १५७८) "चौदसया व्यासी वहसाखई, वद चौदस नाम लुंको राखई"
दयाधर्म चौपाई। xx (५) लौंकागच्छीय यति केशवजी
"पुनम गछई गुरु सेवनथी, शयद ना अाशिष वचनथी । पुत्र सगुण थयो लख हरषि, शत चउदे सत सितरवर्षि ॥११॥”
२४ कड़ी का सिलोको।
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