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हैं। इस कारण केवल लौकों, तथा स्थानक मार्गियों को ही नहीं किन्तु तपागच्छ तथा सब संसार को भी यह मान्य होना चाहिये । पर दुःख इस बात का है कि अभी तक तो तपागच्छ बालों ने उन दो पन्नों को देखातक भी नहीं है । और न किसी ने यह भी कहा है कि वास्तव में ये दो पन्ने तपागच्छीय यति के हैं या इनके नाम पर किसी ने कल्पित ढाँचा खड़ा किया है। इन पन्नों का वस्तुतः निर्णय न होने के पहिले ही स्थानकमार्गी साधु संत बालजी ( लघुशताऽवधानी मुनि श्री शौभाग्यचंदजी ) बीच में ही कूद पड़े हैं । अर्थात् इन्होंने बीच में ही इन दो पन्नों को मिथ्या सिद्ध करने को कमर कसी है । उन पन्नों के विरोध में आप लिखते हैं कि लौंकाशाह का जन्म अहमदाबाद में हुआ । ( पन्नों में रहट बाढ़ा लिखा है ) लौंकाशाह के लभ की बरात अहमदाबाद से सिरोही गई ( पन्नों में अरहटवाड़ा से सिरोही जाना लिखा है ) लोकाशाह ने यति दीक्षा नहीं ली किंतु उन्होंने गृहस्थावस्था में ही शरीर छोड़ा |
संत बालजी ने केवल अपनी ओर से नहीं किन्तु श्रीमान् बाड़ी० मोती० शाह की "ऐतिहासिक नोंध " के आधार पर ही यह लिखा है । यही क्यों पर वि० सं० १८६५ में स्वामी जेठमलजी भी लौकाशाह को यति नहीं पर गृहस्थ ही लिख गए हैं, यह
हुई स्थानकमार्गियों की आपस की विरुद्धता, अब उन दोनों पनों को इतिहास की कसोटी पर भी कस के देखें कि सत्य किस तह पर विद्यमान हैं।
दोनों पन्नों में वि० सं० १४९७ में लौंकाशाह का सिरोही
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