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प्रकरण दूसरा में लम होना बतलाया है और इतिहास वि० सं० १४९७ में - बादशाह मुहम्मद का देहान्त बताता है इस समय लौकाशाह अरहटवाड़ा जैसे गाँव में मात्र १५ वर्ष की उम्र का एक नादान लड़का था। बादशाह किस चिड़िया का नाम है यह भी उसे ज्ञात नहीं था। वि० सं० १५०० में लौकाशाह के एक पुत्र हुआ और उसने कुछ अतिक दुकानदारी भी की फिर अहमदाबाद गया वहाँ नाणावटी का धंधा किया और अनन्तर बादशाह की भेंट हुई। पर जब लौकाशाह के व्याह के वक्त हो बादशाह मुहम्मद मर गया तो फिर लौंकाशाह को बादशाह की भेंट होना
और अपना तिजोरीदार बनाना कैसे सिद्ध होता है ? सुज्ञ पाठक स्वयं विचार करें।
हाँ ! बादशाह मरने के बाद पीर हुआ हो और पीर होकर लोकाशाह को पाटण और अहमदाबाद का तिजोरीदार बनाया हो तो स्वामिजी का काम निकल सकता है, क्योंकि लौंकाशाह के जीवन से यह भी पाया जाता है कि लौंकाशाह को पीर का इष्ट था, और उस अनार्य संस्कृति के प्रभाव से ही उसने आर्य होकर भी जैन धर्म में ऐसा अनार्योचित उत्पात मचाया था। ___यदि उन दो पन्नों में वि० सं० १५०० में अरहटवाड़ा में लौकाशाह के पुत्र होने का नहीं लिखते तो कम से कम लौकाशाह ___ १ रा० ब०५० गौरीशंकरजी ओझा अपने राजपूताने के इतिहास 'पृष्ठ० ५३६ पर लिखते हैं कि अहमदाबाद के बादशाह मुहम्मद का देहान्त वि० सं० १४९७ में हुआ था।
२ साक्षर डाह्या भाई प्रभुराम ने गुजरात के इतिहास में लिखा है कि अहमदाबाद का बादशाह मुहम्मद वि० सं० १४९७ में स्वर्गस्थ हुआ।
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