Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
करता है उसीसमय नैमित्तिकभूत रागादिभावों का प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान होता है । तथा जिससमय इन भावों का प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान हुआ उससमय साक्षात् अकर्ता हो जाता है।
इसी प्रकार गाथा १५७, १५८, १५६, १६१, १६२, १६३, २७८, २७९, ३१२ व ३१३ की आत्मख्याति टीका से यह सिद्ध है कि रागादिक को परद्रव्य (द्रव्य कर्म ) निमित्त है। और गाथा ५०-६८ तक, तथा ७५ व ७८ में अजीवद्रव्य निमित्त होने के कारण इन रागादिक का अजीव के साथ तादात्म्य सम्बन्ध व व्याप्य-व्यापकभाव कहा है।
जं.ग. 7-2-63/VII व IX/ आत्माराम
जीव द्रव्य : विविध
जीव के अस्तित्व की सिद्धि शंका-जीव का अस्तित्व कैसे सिद्ध किया जा सकता है जबकि मनुष्य को घड़ी आदि मशीनों से उपमा वी जाती है ? यदि ज्ञान को विशेषता जताई जाय तो उसका उत्तर यह होता है कि वह भी मशीन का कार्य है जो मशीन ठप्प होते ही समाप्त हो जाती है ? .
समाधान-अचेतन पुदगलद्रव्य तो इन्द्रियगोचर है। उसका अस्तित्व स्वीकार करने के लिये किसी यक्ति या आगम प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। इसप्रकार अचेतनद्रव्य का अस्तित्व सिद्ध हो जाने पर उसके प्रतिपक्ष पदार्थ चेतनपदार्थ की सिद्धि हो जाती है, क्योंकि समस्त पदार्थ अपने प्रतिपक्ष सहित ही उपलब्ध होते हैं। यदि अशुद्ध घी न हो तो शुद्ध घी की भी उपलब्धि नहीं हो सकती। आज से पचास वर्ष पूर्व जब तक वनस्पति घी की उत्पत्ति नहीं हुई थी तब तक किसी की दुकान पर भी 'शुद्ध घी' का साइनबोर्ड ( पाटिया) लगा हुआ नहीं होता था। 'अचेतन' शब्द यह सिद्ध कर रहा है कि कोई न कोई चेतन वस्तु भी है।
अचेतनद्रव्य से चेतनद्रव्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि चेतनद्रव्य अनादि है। यदि चेतनद्रव्य को सादि मान लिया जावे तो उससे पूर्व अर्थात् चेतनद्रव्य की उत्पत्ति से पूर्व ज्ञानप्रमाण का अभाव प्राप्त होता है। ज्ञापकप्रमाण के अभाव में समस्त ज्ञेय व प्रमेयों अर्थात समस्त अचेतनद्रव्यों के प्रभाव का प्रसंग पाजायगा। प्रचेतन के अभाव में चेतन की उत्पत्ति भी नहीं हो सकेगी।
चेतन एक स्वतंत्रद्रव्य है, क्योंकि वह उत्पाद, व्यय और ध्र वरूप है । चेतन की ध्र वता असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि जब जीव मरकर दूसरी पर्याय में उत्पन्न होता है तो उसको अपने पूर्वभव का ज्ञान रहता है। जातिस्मरण की तथा पुनर्जन्म की अनेकों घटनायें समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं । सहारनपुर का मनोहरलाल व्यक्ति मरकर बरेली में एक प्रोफेसर के पुत्र हुआ। वह बालक सहारनपुर में आया और उसने पूर्वभव के सम्बन्धियों मित्रों तथा मकान आदि सबको पहिचान लिया और वह बालक उनके साथ वैसा ही व्यवहार करता था जैसा कि वह मनोहरलाल की पर्याय में करता था। यदि चेतनद्रव्य ध्रव न होता और मात्र अचेतनद्रव्य की विशेष पर्याय होती तो पूर्वपर्याय की स्मृति किसको रहती ?
माषं प्रमाण भी इस प्रकार है
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