Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ।
[ १०९९
"यथा आो गुडः अधिकमधुररसः स पारिणामिकः तदुपरि ये रण्वादय पतन्ति ते भावान्तरम् तेषामुपादानं क्लिन्नो गुडः करोति, अन्येषा रेग्वादीनां स्वगुणमुत्पायति परिणामयतीति पारिणामिकः, परिणामक एव पारिणामिकः ।" तत्त्वार्थवृत्ति पृ० २०६ ।
जैसे अधिक मधुररसवाला गीला गुड़ पारिणामिक ( परिणमन कराने वाला ) होता है उस गीले गुड़ पर जो धूल आदि गिरती है वे धूल-कण भावान्तर अर्थात् गुड़रूप परिणम जाते हैं गीला गुड़ उन धूल-कण को ग्रहण करके अपने गुणरूप अर्थात् मधुररसरूप परिणमाता है इसलिये गीला गुड़ परिणामक अर्थात् पारिणामिक है। जैसे वह अधिक गुणवाला गुड़ पारिणामिक परिणमन करानेवाला होता है उसीप्रकार अन्य भी अधिकगुण वाले अल्प गुणवाले को परिणमाते हैं।
श्री अमृतचन्द्राचार्य ने भी 'तत्त्वार्थसार' में कहा है
बन्धेऽधिकगुणो यः स्यात्सोऽन्यस्यपारिणामिकः ।
रेणोर धिकमाधुर्यो दृष्टः मिलन गुडो यथा ॥७५॥ [तत्त्वार्थसार ] बंध होने पर जो अधिक गुणवाला है वह हीन गुणवाले को अपने रूप परिणमा लेता है। जैसे अधिक मिठास से युक्त गीला गुड़ धूलि को अपनेरूप परिणमाता हुआ देखा जाता है ।
प्रतः सोनगढ़ वालों की यह मान्यता कि 'शरीरादिक का प्रत्येक परमाणु स्वतंत्ररूप से परिणमित हो रहा है, उसे कोई दूसरा बदल दे ऐसा तीनकाल में भी नहीं हो सकता, उपयुक्त आगम से विरुद्ध है। बन्ध हो जाने पर स्वतन्त्रता नष्ट हो जाने से परतंत्र हो जाता है। शरीर भी पुद्गल की बंधरूप स्कन्ध पर्याय है।
ज. ग. 8-2-73/VII & VIII/ सुलतानसिंह दो प्रमूर्तिक द्रव्यों का बन्ध ( संबन्ध ) नहीं होता शंका-दो अथवा दो से अधिक अमूर्तिक द्रव्यों के परस्पर सम्बन्ध होने पर क्या कोई तीसरी अमूर्तिक वस्तु उत्पन्न हो सकती है, जिस प्रकार कि मूर्तिक परमाणुओं के परस्पर बन्ध से विभिन्न मूर्तिक वस्तुओं का उद्भव होता है।
समाधान-दो अमूर्तिक द्रव्यों का परस्पर बन्ध नहीं होता प्रतः तीसरी अमूर्तिक वस्तु के उत्पन्न होने का प्रश्न ही नहीं उठता। श्री प्रवचनसार गाथा ९३ की टीका में कहा भी है-अनेकद्रव्यात्मकंक्यप्रतिपत्तिनिबन्धनो द्रव्यपर्यायः । स द्विविधः, समानजातीयोऽसमानजातीयश्च । तत्र समानजातीयो नाम यथा अनेकपुद्गलात्मको घणकस्त्यणुकः इत्यादि असमानजातीयो नाम यथा जीवपुद्गलात्मको देवो मनुष्य इत्यादि ।
____ अर्थ-अनेक द्रव्यात्मक एकता को प्रतिपत्तिका कारणभूत द्रव्यपर्याय है। वह दो प्रकार है(१) समानजातीय (२) असमानजातीय । समानजातीय वह है जैसे कि अनेक पुद्गलात्मक द्वि-अणुक, त्रिप्रणुक इत्यादि । प्रसमानजातीय वह है जैसे कि जीव पुद्गलात्मक देव, मनुष्य इत्यादि -नोट:-यहाँ पर दो या अधिक प्रमूर्तिक द्रव्यात्मक एकता की प्रतिपत्ति को कारणभूत ऐसी कोई द्रव्यपर्याय नहीं कही है। पुद्गल की पुद्गल के सम्बन्ध से तथा जीवपुद्गल के सम्बन्ध से दो प्रकार की ही द्रव्यपर्याय कही गई है, तीसरे प्रकार की कोई द्रव्यपर्याय नहीं कही है। अतः दो अमूर्तिक द्रव्यों के सम्बन्ध से कोई द्रव्यपर्याय उत्पन्न नहीं होती।
-जे. सं. 6-9-56/VI/ बी. एल. पद्म शुजालपुर
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