Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १२२७
सर्वज्ञदेव ने सर्वथा नियतिवाद को एकान्तमिथ्यात्व कहा है। कहा भी है-'जिसका, जहाँ, जब, जिसप्रकार, जिससे, जिसके द्वारा, जो होना होता है, तब, तहाँ, तिसका, तिसप्रकार, तिससे, तिसके द्वारा, वह होना नियत है; अन्य कुछ नहीं कर सकता। यह सर्वथा नियतिवाद एकान्तमिथ्यात्व है (अमितगति पंचसंग्रह ११३१२, गो० सा. क.कां. गाथा ८८२, प्राकृतपंचसंग्रह पृ० ५४७ )।
यदि चीन न्यायमार्ग को न छोड़ता तो भारत पर चीन का आक्रमण नहीं हो सकता था। सर्वज्ञज्ञान की प्राधीनता के कारण नहीं, किन्तु बुद्धि-पूर्वक चीन ने न्यायमार्ग छोड़ा है अतः वह निन्दा का पात्र हुआ। चीन न्यायमार्ग को ग्रहण करने तथा छोड़ने में स्वतन्त्र था, नियति ( क्रमबद्धपर्याय ) की कोई पराधीनता नहीं थी। 'नियति' का सिद्धान्त किसी अपेक्षा से है, सर्वथा नहीं है। यदि नियति का सिद्धान्त अनियति निरपेक्ष होता तो शंकाकार की शंका उचित थी।
शंकाकार स्वयं विचार करे कि उक्त शंका कागज पर इसलिये लिखी गई कि उस कागज कलम तथा हाथ प्रादि का उसप्रकार का परिणमन उससमय ऐसा होना नियत था, या शंकाकार ने अपनी स्वतन्त्र इच्छापूर्वक उक्त शंकाओं को अपने पुरुषार्थ द्वारा लिख कर भेजा है।
शंका-श्री केवलीभगवान समस्त द्रव्यों को सर्वपर्यायों को जानते हैं, ऐसा आगम में कहा है। समस्त. पर्यायों के क्रम को भी जानते हैं कि अमुकपर्याय से पूर्व व पश्चात अमुकपर्याय हुई थी और अमुकपर्याय होगी तभी तो वे भूत व भविष्यपर्यायों को बतला देते हैं। ऐसा होने से केवलीभगवान प्रत्येक पुद्गलद्रव्य की अनन्तानन्तकाल पूर्व अर्थात प्रथमपर्याय को और अनन्तानन्त काल पश्चात् होनेवाली अर्थात् अन्तिमपर्याय को भी जानते होंगे तो क्या किसी भी केवलीभगवान ने आज किसी भी द्रव्य की प्रथम और अंतिमपर्याय का कथन किया है ? समस्तपर्यायों के क्रम के ज्ञाता श्रीकेवलीभगवान से किसी पुदगलद्रव्य की प्रथमपर्याय व अन्तिमपर्याय का प्रश्न करे तो क्या वे बतला सकते हैं? इसीप्रकार प्रथम होनेवाले सिद्धजीव का क्या नाम या किस गति, क्षेत्र से तथा काल में सिद्ध हुए थे और अन्तिम सिद्ध कौन जीव होगा; क्या केवलीभगवान यह बतला सकते हैं ?
समाधान-केवलीभगवान प्रत्येक द्रव्य को जानते हैं। द्रव्य में अतीत, अनागत और वर्तमान रूप जितनी अर्थपर्यायें और व्यंजन पर्यायें होती हैं, वह द्रव्य तत्प्रमाण है ( गो० सा० जी० का• गाथा ५८२) अतः केवली प्रत्येकद्रव्य की समस्तपर्यायों को जानते हैं यदि केवली समस्त पर्यायों के समूह को न जानें तो वे द्रव्य को नहीं जान सकते । केवलज्ञान में ऐसा विकल्प सम्भव नहीं है कि अमुकपर्याय के पूर्व और पश्चात् कौन-कौन पर्याय होंगी, या हई थी, इसप्रकार का विकल्प छद्मस्थ-ज्ञान में सम्भव है। इसलिए केवलज्ञान में यह भी विकल्प सम्भव नहीं है कि प्रथमपर्याय क्या थी और अन्तिमपर्याय क्या होगी। केवलज्ञानी प्रश्न सुनकर उत्तर देते हों, ऐसा भी सम्भव नहीं है क्योंकि केवलज्ञानी के इन्द्रियज्ञान का प्रभाव होने के कारण 'सुनकर' ऐसा कहना ही उचित नहीं है। दूसरे 'इच्छा का अभाव होने के कारण 'उत्तर देते हैं' यह बात नहीं सिद्ध होती। इसीप्रकार समस्त सिद्धों को जानते हये भी केवलज्ञान में यह विकल्प नहीं होता कि प्रथम सिद्ध कौन हुआ और अन्तिमसिद्ध जीव कौन होगा?
आगम में ऐसा कथन है कि 'केवलीभगवान प्रथमपर्याय या अन्तिमपर्याय को अथवा प्रथमसिद्ध और अन्तिमसिद्ध को जानते हैं,' मेरे देखने में नहीं आया। 'केवलज्ञानी समस्त पर्यायों और समस्त सिद्धों को जानते हैं.' ऐसा कथन आगम में अवश्य पाया जाता है। केवलीभगवान किसरूप से और किसप्रकार जानते हैं ये तो हम नहीं जानते, प्रतः केवलोभगवान ने जिस आगम का अर्थ रूप से व्याख्यान किया है, जिसको गणधरदेव ने धारण किया है।
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