Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १४०५
इस श्लोक में श्री महानाचार्य विद्यानन्दजी ने यह बतलाया कि बंध के कारण मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग सूत्र में बतलाये गये हैं। इस सूत्र की सामर्थ्य से यह भी सिद्ध होता है कि इनके उलटे सम्यग्दर्शन, व्रत, अप्रमत्त, अकषाय और प्रयोग ये पांच मोक्ष के कारण हैं। इसप्रकार इस श्लोक में व्रत को मोक्ष का कारण बतलाया गया है।
इनके अतिरिक्त अनेक दिगम्बर जैन पार्षग्रन्थ हैं जिनमें श्री कुन्दकुन्दादि दिगम्बर जैन प्राचार्यों ने दया, दान, महाव्रतरूप भावों को मोक्ष का कारण बतलाया है । सोनगढ़सिद्धान्त अनुसार ये सब कुशास्त्र हैं ।
अनार्षग्रन्थों के आधार पर पार्षग्रन्थों का खण्डन नहीं हो सकता है। सोनगढ़ के नेताओं ने अपने कथन के समर्थन में एक भी पार्षग्रन्थ का प्रमाण नहीं दिया है।
जिस साहित्य में दिगम्बर जैनाचार्यों के कथन का विरोध हो वह दिगम्बरजैनसाहित्य नहीं हो सकता है।
सोनगढ़ के नेताओं से निवेदन कि यदि वे स्व-पर का कल्याण चाहते हैं तो उनको अपने साहित्यमें परिवर्तन करना होगा। पार्षग्रन्थ विरुद्ध बातों को निकालना होगा।
शास्त्रिपरिषद् के प्रस्ताव का सुन्दर उत्तर भूल को स्वीकार करना था, न कि उस भूल की पुनरुक्ति करना।
–णे. ग. 2-5-66/VII/........ हिंसा और सोनगढ़ सिद्धान्त शंका-दि० जैनधर्म में 'अहिंसा परमो धर्मः' एक मूल सिद्धांत माना जाता है, किन्तु यह जैनधर्म का निज का सिद्धांत नहीं है, क्योंकि जैनियों के भगवान महावीर ने अहिंसा या जीवदया का उपदेश नहीं दिया है, ऐसा जैन साहित्य से स्पष्ट है । जैन साहित्य के वे वाक्य निम्न प्रकार हैं
'भगवान ने पर-जीवों की दया पालने को कहा है या अहिंसा बतलाई है अथवा कर्मों का वर्णन किया हैइसप्रकार मानना न तो भगवान को पहिचानने का वास्तविक लक्षण है और न भगवान के द्वारा कहे गये शास्त्रों को ही पहिचानने का। यह बात मिथ्या है कि भगवान ने दूसरे जीवों की दया स्थापित की है।' [सोनगढ़-मोक्षशास्त्र]
इससे ज्ञात होता है कि मैनधर्म में अहिंसा व जीवदया का सिद्धांत वैदिकधर्म से लिया गया है, क्योंकि उसमें कहा है
दया धर्म को मूल है, पाप मूल अभिमान ।
तुलसी दया न छोड़िये, जब लग घट में प्राण ॥ नोट-यह एक अजैन का प्रश्न है जिस पर गम्भीर विचार होना चाहिये ।
शंकाकार का बहुत आभार है कि दि० जैनधर्म के नाम पर प्रकाशित होने वाले ऐसे साहित्य को वह दि० जैनों की दृष्टि में लाया है ।
___समाधान-मोक्षशास्त्र, मूल जो संस्कृत में है वह तो श्री उमास्वामी विरचित है जिसमें अहिंसा और जीवदया का उपदेश है। इस पर जो भाषा टीका सोनगढ़ से प्रकाशित हुई है, जिसके वाक्य शंकाकार ने उद्धृत किये हैं, यह दि० जैन सिद्धान्तानुकूल नहीं है। क्योंकि श्री कुन्दकुन्दादि प्राचार्यों ने भगवान के उपदेश अनुसार अहिंसा व जीवदया को धर्म बतलाया है।
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