Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
इसीप्रकार तत्त्वानुशासन में भी कहा है
'ध्यातोऽर्हत्सिद्धरूपेण चरमाङ्गस्य मुक्तये । तद्वयानोपात्तपुण्यस्य स एवान्यस्य भुक्तये ॥१९४॥'
अर्थात-अरहन्त और सिद्ध के रूप में ध्याया गया यह प्रात्मा, चरमशरीर धारण करनेवाले को मुक्ति देने में समर्थ होता है और जो चरमशरीरी नहीं है, किन्तु उसध्यान से जिसने पुण्य पैदा किया है उसे भुक्ति (भोगों को ) देनेवाला होता है । इसीप्रकार मूलाचार अधिकार ५ गाथा ३८ में कहा है।
-. सं 4-12-58/V/ रामदास कराना
पागम व प्रत्यक्ष प्रमाण से पुनर्जन्म सिद्ध है शंका-पुनर्जन्म है यह ठीक कैसे मान ? कोई प्रमाण हो तो बताओ।
समाधान-किसी भी प्रसत्द्रव्य का उत्पाद व सत्द्रव्य का व्यय नहीं होता, किन्तु द्रव्यसत् रहते हुए भी अपनी अवस्था में परिणमन करता रहता है। श्री पंचास्तिकाय में कहा भी है
उप्पत्तीव विणासो दम्वस य णस्थि अस्थि सम्भावो । विगमुप्पावधवत्त करेंति तस्सेव पज्जाया ॥११॥ भावस्स पत्ति णासो पत्थि अभावस्स चेव उप्पादो। गुणपज्जयेसु भावा उप्पादवए पकुम्वति ॥१५॥ मणुसत्तषण णट्ठो देही हवेदि इदरो वा। उभयत्त जीवभावो ण जस्सदि ग जायदे अण्णो ॥१७॥
अर्थ-द्रव्य का उपजना अथवा विनाश नहीं है सत्तामात्र स्वरूप है। तिसही द्रव्य के परिणाम उत्पाद, व्यय, धौव्य को करते हैं। सतरूप पदार्थ का नाश नहीं है और अवस्तु का उपजना नहीं है। जो पदार्थ है बह गुणपर्यायों में ही उत्पाद और व्यय को करते हैं। मनुष्यपर्याय का विनाश होकर जीव देवपर्यायरूप परिणमता ( उत्पन्न होता या जन्मता ) है । दोनों पर्यायों में जीव ही है । अन्य कुछ न नाश है और न जन्म है।
वर्तमान विज्ञान ने भी यही स्वीकार किया है कि सत् का व्यय नहीं और असत् का उत्पाद नहीं है। समाचारपत्रों में ऐसे अनेक समाचार प्रकाशित होते हैं कि अमुक बालक ने अपने पहले भव की बातें बतलाई जो सत्य हुईं । १९४९ के समाचार पत्रों में परमानन्द के विषय में प्रकाशित हुआ था जिसकी सहारनपुर व मुरादाबाद में सोडा फैक्ट्री थी, मरकर बरेली में एक प्रोफेसर के पुत्र उत्पन्न हुआ। वह मुरादाबाद व सहारनपुर आया और अपने मकान, भाई, स्त्री, पुत्र, मित्र, मिस्त्री आदि को पहचान लिया । यह सब प्रत्यक्ष देखा गया है।
अतः प्रागम प्रमाण व प्रत्यक्ष प्रमाण से पुनर्जन्म सिद्ध है।
-जे. सं. 30-1-58/VI/मनोहर राजाराम घोड़के, परलीबैजनाथ
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