Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १२८९
कारण-कार्य व्यवस्था
(१) कथंचित् कुम्भकार घट का कारण है
(२) "कारण" की परिभाषा शंका-'कुम्भकार घट का कारण है' क्या ऐसा मानना कारणविपर्यास है ?
समाधान सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि 'कारण' किसे कहते हैं ? प्रमेय रत्नमाला में लिखा है 'जिसके सदभाव में जिसकार्य की उत्पत्ति हो और जिसके अभाव में कार्य की उत्पत्ति न हो वह पदार्थ उस कार्य का कारण होता है।'
"यभावाभावाभ्यां यस्योत्पत्यनुत्पत्ती तत् तत्कारणमिति ।" [ १।१३ ] श्री वीरसेनस्वामी ने जो ध. पु. १२ में कहा है"यबस्मिन् सत्येव भवति नासति तसस्य कारणमिति न्यायात् ।" ध. १२ पृ. २८९ ।
अर्थ-जो जिसके होने पर ही होता है और जिसके होने पर नहीं होता है वह उसका कारण होता है, ऐसा न्याय है।
आप्त-परीक्षा में भी कहा है-- "यन यदन्वयव्यतिरेकानुपलम्भस्तत्र न तन्निमित्तकत्वं दृष्टम् ।"
"तरकारणकत्वस्यतदन्वयव्यतिरेकोपलम्भेन व्याप्तत्वात् कुलालकारणकस्य घटादेः कुलालान्वयव्य तिरेकोपलम्भप्रसिद्ध । पृ. ४०-४१ ।
अर्थात्-जिसका जिसके साथ अन्वय-व्यतिरेक का अभाव है वह उसजन्य नहीं होता ऐसा देखा जाता है। जैसे जुलाहादि का घटआदि के साथ अन्वय-व्यतिरेक नहीं है। इसलिये घटादि जुलाहादि-निमित्तकारणजन्य नहीं है अर्थात् जुलाहादि घटादि के निमित्तकारण नहीं है और यह निश्चित् है कि जो जिसका कारण होता है उसका उसके साथ अन्वय-व्यतिरेक अवश्य पाया जाता है। जैसे कुम्हार से उत्पन्न होने वाले घटादि में कुम्हार का अन्वयव्यतिरेक स्पष्टतः प्रसिद्ध है।
श्री राजवातिक में भी कहा है
"यथा मृत्पिण्डो घटकार्यपरिणामप्राप्ति प्रति गृहीताभ्यन्तरसामर्थ्यः बाह्यकुलालदण्डचक्रसूत्रोदककालाकाशाधनेकोपकरणापेक्षः घटपर्यायेणाऽऽविर्भवति, नैक एव मृत्पिण्डः कुलालादिबाह्य साधनसन्निधानेन विना घटात्मनाविर्भवितु समर्थः ।" [ ५॥१९॥३१ ]
अर्थात्-मृतपिण्ड में घटरूप परिणमने की सामर्थ्य होते हुए भी घटपर्याय के लिये बाह्य कुम्हार, दण्ड, चक्र, चीवरादि की अपेक्षा रखता है । कुलालादि बाह्यसाधन के बिना एक मृतपिंड ही घटरूप परिणमने में समर्थ नहीं है।
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