Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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१३७० ]
[ पं० रतनचन्द जैन
मुख्तार :
न गुण है । संख्या श्रुतज्ञान का विषय होने से अनन्तभावीनोप्रागमद्रव्यनिक्षेप का लक्षण श्रुतज्ञान की अपेक्षा से किया गया है । 'जिन' जीवद्रव्य की पर्याय है अतः जिनभावी नो श्रागमद्रव्यनिक्षेप का लक्षण श्र तज्ञान की अपेक्षा से न करके जीव की पर्याय की अपेक्षा से किया गया है ।
- जैग. 6-5-76 / VIII / ज. ला. जैम, भीण्डर
अर्थ एवं परिभाषा
श्रागम में 'अन्तर' शब्द का अर्थ
शंका- प्रकारान्तर, भवान्तर, अर्थान्तर, समयान्तर, आत्मान्तर, पदार्थान्तर इसप्रकार के अनेक शब्द आगम में पाये जाते हैं। यहां पर 'अन्तर' शब्द किस अर्थ का सूचक है ?
समाधान—यहाँ पर 'अन्तर' शब्द का अभिप्राय ' भिन्न, दूसरा या श्रन्य' से है । जैसे 'प्रकारान्तर' अर्थात् विवक्षित प्रकार से भिन्न अन्यप्रकार से । 'भवान्तर' विवक्षित भवके अतिरिक्त अन्यभव या दूसराभव । ' अर्थान्तर' विवक्षितअर्थ के अतिरिक्त अन्य अर्थ । 'समयान्तर' विवक्षितसमय से दूसरा समय । इसप्रकार अन्यत्र भी जान लेना चाहिए ।
- जै. ग. 16-7-70 /रो ला. मि.
'अक्षर' से अभिप्राय
शंका--- सूक्ष्मनिगोदिया के अक्षर के अनन्तवें भाग ज्ञान होना बतलाया है। यह अक्षर कौनसा है ? क्या प्राचीन अक्षर या कोई दूसरा अक्षर या अक्षर का अर्थ केवलज्ञान भी हो सकता है ?
समाधान - ध० पु० १३ पृ० २६२ पर इस सम्बन्ध में निम्नप्रकार कथन है
'सूक्ष्मनिगोद लब्ध्यपर्याप्तक के जो जघन्यज्ञान केवलज्ञान का अनन्तवांभाग है । यह ज्ञान निरावरण है, ऐसा आगमवचन है, अथवा इसके प्रावृत्त होने पर जीव के प्रभाव का प्रसंग नाता है ।'
होता है उसका नाम 'लब्ध्यक्षर' है । इसका प्रमाण क्योंकि अक्षर के अनन्तवभाग नित्य उद्घाटित रहता है,
इसप्रकार श्री वीरसेनाचार्य ने 'अक्षर' शब्द से केवलज्ञान को ग्रहण किया है, क्योंकि केवलज्ञान में वृद्धि और हानि नहीं होती, इसलिए केवलज्ञान को अक्षर कहा है ।
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प्रणु-परमाणु प्रमेय प्रमाण में अन्तर
शंका - प्रमेय और प्रमाण में क्या अन्तर है ? ऐसे ही अणु और परमाणु में क्या अन्तर है ?
समाधान- प्रमाण का जो विषय है वह प्रमेय है । पदार्थ प्रमेय है । पदार्थ का यथार्थ ज्ञान प्रमाण है । प्रमेय और प्रमाण में विषय और विषयी का अन्तर है । अणु और परमाणु दोनों शब्दों का एक अर्थ है । जिसका भाग न हो सके ऐसे अविभागी पुद्गल को अणु या परमाणु कहते हैं । कालद्रव्य भी अप्रदेशी अथवा एकप्रदेशी है उसकी अवगाहना भी पुद्गलपरमाणु के बराबर है, श्रतः कालद्रव्य को भी काला कहते हैं ।
लै. ग. 6-13-5-65 / XIV / मगनमाला
-- जै. ग. 8-2-68 / IX / ध ला. सेठी
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