Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
'प्रस्तार' का अर्थ शंका-सर्वार्थ सिद्धि अ० ४ सूत्र २० में प्रस्तार शब्द आया है। इस शब्द का क्या अभिप्राय है ?
समाधान-सर्वार्थ सिद्धि अध्याय ४ सूत्र २० में प्रस्तार का अर्थ पटल है। पूर्व पटल से उत्तर पटल में सुख, आयु आदि की वृद्धि होती जाती है। विशेष के लिये तिलोयपण्णत्ती अ. ८ गा. ४६३-५०९ देखना चाहिए।
-पतावार अगस्त 77/ ज. ला. गैन, भीण्डर
भक्ति और श्रद्धा में अन्तर शंका--भक्ति और श्रद्धा में क्या अन्तर है ? शास्त्रोक्त विधि से स्पष्ट कीजिये ।
समाधान-- 'गुणों में अनुराग' भक्ति है । 'प्रतीति, रुचि' श्रद्धा है। सम्यग्दृष्टि श्रावक के तत्त्वश्रद्धान हर समय रहता है, किन्तु भक्ति हरसमय नहीं होती।
-जं. सं. 4-9-58/V/ भागघद जैन, बनारस
भावपरमाणु का अर्थ शंका-सर्वार्थ सिद्धि पृ० ४५६ पंक्ति १६ में 'भावपरमाणु' का क्या अर्थ है ? समाधान-भावपरमाणु का अर्थ 'पर्याय की सूक्ष्मता' है । कहा भी हैभावपरमाणु पर्यायस्य सूक्ष्मत्वं' [तत्त्वार्थवृत्ति पृ० ३१२ ]
-जं. ग. 10-6-65/IX/ ट. ला. जैन, मेरठ
मरणावली का अर्थ शंका-पंचसंग्रह पेज ५३ पर लिखा है कि-'मिश्रगुणस्थान को छोड़कर आगे से लेकर प्रमत्तसंयत तक के जीवों के मरणावली के शेष रहने पर आयुकर्म की उदीरणा नहीं होती।' यहां मरणावली का क्या मतलब है ?
समाधान-उदयावली से उपरितन निषेकों के द्रव्य का उदयावली में दिया जाना उदीरणा है। जिसकर्म की स्थिति एकावली मात्र रह गई है उसकी उदीरणा संभव नहीं है। आयु की जब एक प्रावली मात्र शेष स्थिति रह जाती है अर्थात् मरण होने से एक प्रावली पूर्व ( मरणावली ) अायुकर्म की उदीरणा रुक जाती है, यानी उस अन्तिम प्रावली या मरणावली में आयु की उदीरणा नहीं होती। आयु की जब अन्तिम प्रावली शेष रह जाती है उस अन्तिमआवली को मरणावली कहते हैं।
-ज. ग. 20-8-64/IX/ ध. ला. सेठी 'यवमध्य सिद्ध' का अर्थ शंका-त. रा. वा० (ज्ञानपीठ) के पृ० ६४८ पर अवगाहनानुयोग में जो 'यवमध्यसिद्धाः संख्येयगुणाः' ऐसा लिखा है इसका स्पष्टार्थ क्या है ?
समाधान-त. रा० वा० अध्याय १० सूत्र ९ वार्तिक १४ की टीका में सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष और जघन्य अवगाहना ३३ हाथ बतलाई है।
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