Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
१३८६ ]
[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
'विडम्बना' का अर्थ
शंका-समयसार गाथा ९१ जे कुणइ भावमादा"की आत्मख्याति टीका में 'विडम्ब्यंते योषितो' शब्द आया है यहां विडम्बना से क्या अर्थ लेना चाहिए? उत्तर-विडम्बना का अर्थ विकारी चेष्टा है।
-पताचार 8-7-80/ज. ला. जैन, भीण्डर
विसंयोजना का अर्थ शंका-सम्यग्दृष्टि के अनन्तानुबंधी चतुष्क की विसंयोजना होती है। विसंयोजना का क्या अर्थ है ? समाधान-ज० ४० में श्री वीरसेनाचार्य ने विसंयोजना का लक्षण निम्नप्रकार कहा है
'का विसंजोयणा ? अणंताणुबन्धि चउक्कक्खखंधाणं परसरूवेण परिणमणं विसंजोयणा। ण परोदयकम्मक्खवणाए वियहिचारो, तेसिं, परसरूवेण परिणदाणं पुणरुप्पत्तीए अभावादो।' (ज.ध. पु. २ पृ. २१९)
अर्थ-विसंयोजना किसे कहते हैं ? अनन्तानुबन्धीचतुष्क के स्कन्धों के परप्रकृतिरूप से परिणमा देने को विसंयोजना कहते हैं ?
विसंयोजना का इसप्रकार लक्षण करने पर जिनकर्मों की परप्रकृति के उदयरूप से क्षपणा होती है उनके माथ व्यभिचार ( प्रतिव्याप्ति ) आजायगा सो भी बात नहीं है, क्योंकि अनन्तानूबन्धी को छोड़कर पररूप से परिशात हए अन्य कर्मों की पूनः उत्पत्ति नहीं पाई जाती है। अतः विसंयोजना का लक्षण अन्य कर्मों की क्षपणा में घटित न होने से अतिव्याप्ति दोष नहीं आता है।
-णे.ग. 9-4-70/VIP ला. मित्तल
संकर दोष शंका-सङ्करदोष क्या है ?
समाधान-श्री पं० हीरालालजी द्वारा संपादित प्रमेयरत्नमाला पृ० २७७ पर सङ्करदोष का लक्षण निम्न प्रकार लिखा है
'सर्वेषां युगपत् प्राप्तिः सङ्करः। परस्परात्यन्ताभावसमानाधिकरणयोधर्मयोरेकवसमावेशः सङ्करः।'
सबके एकसाथ प्राप्त होने के प्रसंग का नाम संकर है। जैसे शरीर को प्रात्मा मानने पर उसमें एकसाथ ज्ञायक-स्वभावता व जड़स्वभावता दोनों का प्रसंग प्राप्त होता है, यह संकरदोष है।
-जे.ग. 19-12-68/VIII/मगनमालाणन
वतादि शब्दों की व्युत्पत्ति शंका-व्रत, संयम और चारित्र में क्या अन्तर है ? क्या ये पर्यायवाची शब्द हैं ?
समाधान-हिंसादिक पापों से विरत होना 'व्रत' कहलाता है। प्रतिज्ञा करके जो नियम लिया जाता है वह व्रत है । यह करने योग्य है और यह नहीं करने योग्य है, इस प्रकार नियम करना व्रत है । ( स. सि.७१)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org