Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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१२६४ ]
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
जैसे 'यदेवैकं तदेवानेकं यदेव सत्तदेवासत् ।' अर्थात् जो वस्तु एक है वही वस्तु अनेक है । जो वस्तु सत्रूप है वही वस्तु असतरूप है । यदि द्रव्य की अपेक्षा वह वस्तु एक है तो गुणपर्याय की अपेक्षा वही वस्तु अनेक हैं । स्वचतुष्टय की अपेक्षा जो वस्तु सतरूप है, वही वस्तु परचतुष्टय की अपेक्षा असत् है । यदि परचतुष्टय की अपेक्षा वस्तु सत्रूप हो जावे तो संकरदोष आजायगा । पढरूप परचतुष्टय की अपेक्षा भी घट सतरूप हो जावे तो घट और पट दोनों एक हो जायेंगे। दोनों में कोई भेद नहीं रहेगा । पट की अपेक्षा घट असत् है ।
" वस्तु एक है, अनेक नहीं है" ऐसा अनेकान्त का स्वरूप नहीं है ।
प्रत्यक्ष पदार्थों का ज्ञान भी प्रत्यक्ष है
शंका- आप्तपरीक्षा कारिका ८८ के अर्थ में पृ. २०६ पर तथा कारिका ९६ के अर्थ में पृ. २१४ पर 'निश्चित' शब्द आया है । वहाँ पर निश्चित का क्या अर्थ है ?
- जं. ग 26-2-70/1X / रो. ला. मि.
समाधान --- पृ. २०६ पर 'सुनिश्चित प्रत्यक्षपदार्थ' शब्द है । अर्थात् प्रत्यक्षपदार्थों का निश्चितरूप से प्रत्यक्षज्ञान है । पृ. २१४ पर प्रमेयपना हेतु का अन्वय अच्छी तरह निश्चित है । 'इन दोनों स्थलों पर निश्चित' से अभिप्राय ' निःसंदेह' का है ।
.. 6-1-72, VII/
शंका- 'ही' शब्द एकान्त का द्योतक है अथवा अनेकान्त का ?
'ही' शब्द एकान्त का द्योतक है अथवा अनेकान्त का ?
समाधान- 'एव' अर्थात् 'ही' शब्द एकान्त का द्योतक है और 'स्यात्' 'कथञ्चित्' शब्द अनेकान्त के द्योतक हैं। क्योंकि इनमें अन्यधर्मो की सापेक्षता रहती है। पं. का. गाथा १४ की टीका में श्री जयसेनाचार्य ने कहा भी है
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"स्यादस्ति द्रव्यमिति पठनेन प्रमाणसप्तभंगी ज्ञायते । कथमिति चेत् ? स्यादस्तीति सकलवस्तु ग्राहकत्वाप्रमाणवाक्यं स्याद' त्येव द्रव्यमिति वस्त्वेकदेशग्राहकत्वन्नियवाक्यं । तथाचोक्तं- सकलादेशः प्रमाणाधीनो विकलादेश नयाधीन इति अस्ति द्रव्यमिति दुःप्रमाण - वाक्यं । अस्त्येव द्रव्यमिति दुर्नयवाक्यं । एवं प्रमाणादिवाक्यचतुष्टयव्याख्यानं बोद्धव्यं ।"
'स्यात् द्रव्य है' इत्यादि, ऐसा पढ़ने से प्रमाण सप्तभंगी जानी जाती क्योंकि 'स्यादस्ति' यह वचन सकल वस्तु को ग्रहण करनेवाला है, इसलिये प्रमाण वाक्य है। 'स्यादस्ति एव द्रव्यम्' अर्थात् 'द्रव्य स्यात् अस्तिरूप ही है' ऐसा वचन वस्तु के एकदेश को अर्थात् उसके मात्र 'अस्तित्व - स्वभाव' को ग्रहण करनेवाला हैं, यह नय वाक्य है । कहा भी है-सकलादेश प्रमाणाधीन है और विकलावेश नयाधीन है। 'अस्ति द्रव्यं' यह दुःप्रमाण वाक्य है व 'अस्ति एव द्रव्यं' यह दुर्नय वाक्य है, क्योंकि अन्यधर्मों की सापेक्षता का द्योतक ऐसे 'स्यात्' शब्द के प्रयोग का अभाव है यहाँ प्रमाण, दुःप्रमाण, नय, दुर्नय के चार वाक्यों का व्याख्यान है ।
अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाणनयसाधनः ।
अनेकान्तः प्रमाणाते तदेकान्तोऽपितान्नयात् ॥ ( वृहत्स्व. श्लोक १०३ )
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