Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ ५० रतनचन्द जैन मुख्तार :
पूर्वोपाजितकर्म का झड़जाना निर्जरा है। वह निर्जरा दो प्रकार की है (१) विपाकजा (२) अविपाकजा। चतुर्गतिमहासागर में चिर परिभ्रमणशील प्राणी के शुभाशुभ कर्मों का औदयिकभावों से उदयावलि में यथाकाल प्रविष्ट होकर, जिसका जिसरूप से बन्ध हया है उसका उसी रूप से स्वाभाविक क्रम से फल देकर स्थिति समाप्त करके, निवृत्त हो जाना विपाकजा निर्जरा है। जिन कर्मोंका उदयकाल नहीं पाया है. उन्हें भी तप विशेष आदि से बलात् उदयावलि में लाकर पका देना अविपाक निर्जरा है। जैसे कि कच्चे आम या पनसफल को प्रयोग से पका दिया जाता है । तप के द्वारा नूतन कर्मबन्ध रुककर पूर्वोपचित कर्मों का क्षय भी होता है, क्योंकि तप से अविपाकनिर्जरा होती है।
इसप्रकार जो कर्म अपने उदयकाल में उदय में आकर फल देकर झड़ जाता है, वह विपाकजा निर्जरा है। यह विपाकजा निर्जरा सब संसारीजोवों के अबुद्धिपूर्वक होती है और इससे अकल्याणकारी कर्मों का बन्ध होता है । तप आदि के द्वारा जो कर्म उदयकाल से पूर्व उदय में लाकर निर्जरा को प्राप्त करा दिये जाते हैं, वह अविपाकजा निर्जरा है। यह अविपाकनिर्जरा बुद्धिपूर्वक होती है और कुशलमूला है, क्योंकि इस निर्जरा से या तो शुभकर्म का बन्ध होता है या बन्ध नहीं होता। विपाकजा निर्जरा अबुद्धिपूर्वक होती है अतः उसमें प्रात्मा के तप आदिक भाव कारण नहीं होते हैं। अविपाकजा निर्जरा में प्रात्मा के तप आदि भाव कारण पड़ते हैं, अता भावनिर्जरा भविपाकनिर्जरा है। किन्तु इसके अतिरिक्त अन्य प्रकार से विपाक और अविपाकनिर्जरा का कथन पाया जो इसप्रकार है
प्रक्षयः पाकजातायां पक्वस्यव प्रजायते। निर्जरायामपक्वायां पक्वापक्वस्य कर्मणः ॥२॥ योगसार प्राभूत
विपाकजा निर्जरा में पके हुए कर्मों की निर्जरा ( क्षय ) होती है । प्रविपाकजा निर्जरा में पके हुए और बिना पके हए कर्मों की निर्जरा होती है।
अविपाकनिर्जरा में, पक्वकर्म और अपक्वकर्म, इन दोनों प्रकार के कर्मों का रस (अनुभाग) निर्जीर्ण कर दिया जाता है अतः उसको प्रविपाकनिर्जरा कहा है, किन्तु पक्वकर्म की अपेक्षा वह प्रविपाकनिर्जरा सविपाक भी है, क्योंकि कर्म यथाकाल उदय में आ रहा है।
-जे. ग. 31-10-74/X/ ज. ला. जन भीण्डर गुणश्रेणीनिर्जरा अविपाक निर्जरा है शंका-गुण श्रेणी में जो द्रव्य निर्जरा होती है, क्या वह अविपाकनिर्जरा है ?
समाधान-गुणश्रेणी निर्जरा में अनुभाग क्षय होकर प्रदेश ( द्रव्य ) निर्जरा होती है अतः असंख्यातगुणश्रेणीनिर्जरा में अविपाकनिर्जरा संभव है । कहा भी है
"विसोहीहि अणुभागक्खएण पदेस णिज्जरा।" ध० पु० १२ पृ. ७९ ।
विशुद्धियों के द्वारा अनुभागक्षय होता है और उससे प्रदेशनिर्जरा होती है। इसके निम्नलिखित ११ स्थान हैं
सम्मुत्सप्पत्ती वि य सावय विरवे अणंतकम्मंसे । दसणमोहक्खवए कसाय उवसामए य उवसंते ॥७॥
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