Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व र कृतित्व ]
कथंचित् चारों गतियों से सिद्धि
शंका- तत्त्वार्थ सूत्र वसमअध्याय में गति आदि की अपेक्षा आठ भेद कैसे सम्भव है, क्योंकि सिद्ध तो मात्र मनुष्यगति से होते हैं ?
समाधान- द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा न तो बंध है, न मोक्ष है, न मनुष्य आदि गति है । व्यवहारनय की अपेक्षा बंध, मोक्ष आदि सब अवस्थाएँ हैं । मनुष्यगति नामकर्म के उदय से जीव और पुद्गल इन दोनों द्रव्यों की जो समानजाति द्रव्यपर्याय उत्पन्न होती है, वह मनुष्यगति है । मनुष्यगति में ही तप होता है । मनुष्यगति में ही समस्त महाव्रत होते हैं, मनुष्यगति में ही शुक्लध्यान होता है और मनुष्यगति से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है ( स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा २९९ ) । भूतनय ( भूतपूर्व प्रज्ञापननय ) की दृष्टि से अनन्तर गति की अपेक्षा केवल मनुष्यगति से सिद्ध होता है, किन्तु एकान्तरगति की अपेक्षा चारों गतियों से सिद्ध होते हैं; क्योंकि, किसी भी गति से मनुष्य होकर सिद्ध हो सकता है। प्रत्युत्पन्नदृष्टि से सिद्धगति में सिद्ध होते हैं ( रा० वा० अ० १० सूत्र ९ वार्तिक ४ ।
reraदृष्टि से आगम में कोई बाधा नहीं आती, क्योंकि आगम में कथन अनेकान्तदृष्टि से है ।
[ ११२९
- जै. ग. 10-10-63 / 1X / गुलजारीलाल
साक्षात् और परम्परा मोक्षमार्ग
शंका- संसार और मोक्ष का क्या कारण है ?
समाधान - राग-द्वेष संसार के कारण 'और वीतरागता मोक्ष का कारण है, श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने भी कहा है-
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रत्तोबंधदि कम्मं मुंचदि जोवो विरागसंपत्तो ।
एसो जिणोववेसो तम्हा कम्मेसु मा रज्ज ।।१५०।। समयसार
अर्थ-रागी जीव तो कर्म को बांधता है तथा वैराग्य को प्राप्त हुआ जीव कर्म से छूट जाता है अर्थात् मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। यह जिन भगवान का उपदेश है। इस कारण कर्मों में प्रीति मत करो, रागी मत होश्रो ।
श्री अमृतचन्द्राचार्य इसकी टीका में लिखते हैं
"य खलु रक्तोऽवश्यमेव कर्म बहनीयात् विरक्त एवं मुच्येतेत्यमागमः ।"
अर्थ- जो रागी है वह अवश्य कर्मों को बाँधता ही है और विरक्त है वही कर्मों से छूटता है अर्थात् मोक्ष को प्राप्त होता है, ऐसा यह प्रागम का वचन है ।
रत्तोबंधदि कम्मं मुच्चदि कम्मेहिं रामरहितत्पा ।
एसो बंघसमासो जीवाणं जाण णिच्छयदो ॥१७८॥ प्रवचनसार
अर्थ - रागी श्रात्मा कर्मों को बांधता है और रागरहित आत्मा कर्मों से मुक्त होता है। यह जीवों के बंध का संक्षेप कथन है, ऐसा निश्चय से जान |
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