Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार !
श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने तथा उनके टीकाकार श्री अमृतचन्द्राचार्य ने निश्चयमोक्षमार्ग और व्यवहारमोक्षमार्ग के भेद से मोक्षमार्ग दो प्रकार का बतलाया है। निश्चयमोक्षमार्ग साध्यरूप है और व्यवहारमोक्षमार्ग साधनरूप है।
श्री अमृतचन्द्राचार्य ने स्वयं निश्चयमोक्षमार्ग को मुख्य मोक्षमार्ग कहा है और व्यवहारमोक्षमार्ग को उपचार मोक्षमार्ग कहा है।
-जै. ग. 6-1-72/VII/....... (१) सम्यग्दर्शन प्रादि तीनों की युगपत्ता से ही मोक्ष सुख सम्भव है (२) प्रकरणवश कहीं सम्यग्दर्शन को, कहीं ज्ञान की और कहीं चारित्र को मुख्यता रहती है
शंका-सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीनों को एकता ही मोक्षमार्ग है ? इन तीनों में किसकी मुख्यता है ?
समाधान-सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र इन तीनों की एकता मोक्षमार्ग है । इन तीनों में से किसी एक के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है। कहा भी है
ण हि आगमेण सिज्झदि सहहणं जदि वि त्थि अत्थेस ।
सद्दहमाणो अत्थे असंजदो वा ण णिवादि ॥ २३७ ।। प्रवचनसार श्री अमृतचन्द्राचार्य कृत टीका"श्रद्धानशून्येनागमजनितेन ज्ञानेन तदविनाभाविना श्रद्धानेन च संयमशून्येन न तावसिद्ध्यति ।"
यहां पर श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने तथा श्री अमृतचन्द्राचार्य ने यह स्पष्ट कर दिया है-आगमजनित ज्ञान यदि श्रद्धानशून्य है तो उस ज्ञान से सिद्धि नहीं होती है। आगम ज्ञान और उसका अविनाभावी श्रद्धान इन दोनों से भी यदि संयम ( चारित्र ) शून्य है तो मुक्ति नहीं होती है ।
'अतः एतदायाति परमागमज्ञानतत्त्वार्थश्रद्धान संयतत्वानां मध्ये द्वयेनकेन वा निर्वाणं नास्ति किन्तु त्रयेणेति ।'
अर्थ-इससे यह बात सिद्ध हुई कि परमागमज्ञान तत्त्वार्थश्रद्धान तथा संयमपना इन तीनों में से मात्र एक से व केवल दो से निर्वाण हो नहीं सकता, किन्तु तीनों से ही मोक्ष होता है।
जहाँ पर ज्ञानरहित व्रतादिक की भत्सना को गई है वहीं पर चारित्ररहित ज्ञान-श्रद्धान की भी भत्सना की गई है।
हतं ज्ञानं क्रिया होनं हता चाज्ञानिनां क्रिया। धावन किलान्धको दग्धः पश्यन्नपि च पङ्गलः ॥त. रा०या०
चारित्र के बिना सम्यग्ज्ञान किसी काम का नहीं है। जब सम्यग्ज्ञान किसी काम का नहीं है तब उसका सहचारी सम्यग्दर्शन भी चारित्र के बिना किसी काम का नहीं है। जैसे वन में प्राग लग जाने पर स्वांखा लंगडा मनुष्य उस आग से बच जाने का मार्ग तो जानता है और यह श्रद्धा भी है कि इस मार्ग से जाने पर अग्नि की दाह से बच सगा, परन्तु चलनेरूप क्रिया (आचरण) नहीं कर सकता इसलिये अग्नि में जलकर नष्ट हो जाता है।
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