Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं. रतनचन्द जैन मुख्तार: समाधान-निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्ग का स्वरूप श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव ने वृहद्व्यसंग्रह में इसप्रकार कहा है
सम्मसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे। ववहारा णिच्छयदो, तत्तियमइओ णिओ अप्पा ॥३९॥
अर्थ-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ( इन तीनों के समुदाय ) को व्यवहारनय से मोक्ष का कारण जानो। सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्रमयी निज प्रात्मा को निश्चय से मोक्ष का कारण जानो ।३६।।
संस्कृत टीकार्थ-श्री वीतराग सर्वज्ञदेव कथित छहद्रव्य, पाँचअस्तिकाय, साततत्त्व और नवपदार्थों का सम्यश्रद्धानज्ञान और व्रतादिरूप आचरण, इन विकल्पमयी व्यवहार मोक्षमार्ग है। निज निरंजन शुद्ध-बुद्ध आत्म. तत्त्व के सम्यक श्रद्धान-ज्ञान तथा आचरण में एकाग्र परिणतिरूप निश्चय-मोक्षमार्ग है। अथवा स्वशुद्धात्मभावना का साधक व बाह्य पदार्थ के आश्रित व्यवहारमोक्षमार्ग है। मात्र स्वानुभव से उत्पन्न व रागादिविकल्पों से रहित सुखानुभवन रूप निश्चयमोक्षमार्ग है । प्रथवा धातुपाषाण से सुवर्ण प्राप्ति में अग्नि के समान जो साधक है, वह तो व्यवहारमोक्षमार्ग है तथा सुवर्ण समान निर्विकार निज-आत्मा के स्वरूप की प्राप्तिरूप साध्य वह निश्चयमोक्षमार्ग है ॥ ३६॥ (टीका )
पुनः निश्चयमोक्षमार्ग का स्वरूप वृहद्रव्यसंग्रह में इसप्रकार कहा है
रयणत्तयं ण वट्टइ अप्पाणं, मुइत्त अण्णदवियसि ।
तम्हा तत्तियमइउ होदिह मुक्खस्स कारणं आदा ॥४०॥ अर्थ-आत्मा को छोड़कर अन्यद्रव्य में रत्नत्रय नहीं रहता, इसकारण रत्नत्रयमयी वह आत्मा ही निश्चय से मोक्ष का कारण है ॥४०॥
सस्कृत टीका-जो रत्नत्रय हैं वे शुद्धआत्मा के सिवाय अन्य घट, पटादि बाह्यद्रव्यों में नहीं रहते, इस कारण अभेद से वह आत्मा ही सम्यग्दर्शन है । वह प्रात्मा ही सम्यग्ज्ञान है, वह आत्मा ही सम्यक्चारित्र है तथा वही निज आत्मतत्त्व है । इस प्रकार कहे हुए लक्षणवाले निजशुद्धात्मा को ही मुक्ति का कारण जानो ॥ ४० ।।
इसप्रकार वृहद्रव्यसंग्रह को गाथा ३९ व ४० से स्पष्ट हो जाता है कि गुण-गुणी के भेदरूप सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्र व्यवहारमोक्षमार्ग है और गुण-गुणी के अभेदरूप 'आत्मा' निश्चयमोक्षमार्ग है। संस्कृत टीकाकार ने अन्य दृष्टियों से भी व्यवहार व निश्चयमोक्षमार्ग का कथन किया है।
श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने भी पंचास्तिकाय में निश्चयव्यवहार मार्ग का कथन इस प्रकार किया है
धम्मादी सद्दहणं सम्मत्तं णाणमंगपुष्वगदं । चेट्टा तवंहि चरिया ववहारो मोक्खमग्गो ति ॥ १६० ॥ णिच्छयणयेण भणिदो तिहि तेहि समाहिदो हु जो अप्पा।
ण कुणदि किंचि वि अण्णं ण मुयदि सो मोक्खमग्गो त्ति ॥१६१।। अर्थ---धर्मास्तिकायादि का श्रद्धान सो सम्यक्त्व अङ्ग पूर्वसम्बन्धी ज्ञान और तप में चेष्टा सो चारित्र इसप्रकार व्यवहारमोक्षमार्ग है ।।१६०॥ जो प्रात्मा वास्तव में इन तीनों ( सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र ) से समाहित
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