Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
समाधान-अष्टसहस्री पृ. १८८ टिप्पण नं. ५ 'सर्वथा' शब्द के स्पष्टीकरण के लिए है जो इस प्रकार है'शक्तिव्यक्तिरूपेण द्रव्यपर्यायरूपेण वा।' 'यद्यसतू सर्वथा कार्यकारिका ४२ में 'सर्वथा' शब्द का अभिप्राय यह है कि जो कार्य शक्तिरूप से भी असत् है व्यक्तिरूप से भी असत है, द्रव्यरूप से भी प्रसत् है पर्यायरूप से भी असत् है वह कार्य सर्वथा असत् होता है। कारिका ४२ में सर्वथा शब्द का यह अभिप्राय नहीं है कि द्रव्यशक्ति की व्यक्ति का नाम ही पर्यायशक्ति है, क्योंकि यहाँ द्रव्यशक्ति व पर्यायशक्ति का प्रकरण ही नहीं है । द्रव्य शक्ति की व्यक्ति पर्यायशक्ति है, ऐसा नहीं कहा गया है और न यह सम्भव है। भव्य जीव में मोक्ष जाने की द्रव्यशक्ति है । जब वह मोक्ष पहुँच जाता है तो द्रव्यशक्ति व्यक्त होती है तो क्या मोक्ष पहँचने पर मोक्ष जाने की पर्यायशक्ति उत्पन्न हुई ? ऐसा कोई नहीं कह सकता है।
-जै. ग. 7-2-66/X/र. ला. जैन, मेरठ स्कन्ध इन्द्रियगाह्य होता है परमाणु नहीं । शब्द स्कन्धजन्य है शंका-जनसंदेश में लिखा है-"अतः परमाणु में शब्दरूप परिणत होने की शक्ति विद्यमान है, वही शब्द पर्यायरूप से व्यक्त होती है। इसी तरह परमाणु में इन्द्रिय प्राह्य होने की भी योग्यता है। तभी तो स्कन्धरूप होने पर वे इन्द्रिय ग्राह्य होते हैं।" इस कथन में क्या आपत्ति है ?
समाधान-पुद्गल की परमाणु और स्कन्ध दो पर्यायें हैं । पुद्गल की परमाणुरूप पर्याय सूक्ष्म-सूक्ष्म है जो परमावधिज्ञान का विषय भी नहीं है, किन्तु सर्वावधिज्ञान का विषय है।
"परमाणुः सूक्ष्म-सूक्ष्मम्, यत्सर्वावधिविषयं तत्सूक्ष्मसूक्ष्ममित्यर्थः।" स्वा. काति. पृ० १४० । इसलिये परमाणु इन्द्रिय ग्राह्य नहीं हो सकता। बंध के द्वारा परमाणुरूप पर्याय का व्यय होकर स्थूलस्कन्धपर्याय का उत्पाद होने पर वह स्कन्धपर्याय इन्द्रियगोचर होती है, परमाणु इन्द्रियगोचर नहीं होता है । उस स्कन्ध में पृथक्-पृथक् परमाणु इन्द्रियगोचर होते हों, ऐसा भी नहीं है। परमाणुरूप पर्याय में इन्द्रिय ग्राह्य होने की योग्यता नहीं है, किन्तु स्थूलस्कन्ध में इन्द्रिय ग्राह्य होने की योग्यता है और जो इन्द्रियों द्वारा ग्रहण होने पर व्यक्त होता है ।
परमाणू में बंध के द्वारा भाषावर्गणारूप परिणत होने की शक्ति है। भाषावर्गणारूप स्कन्ध में शब्दरूप परिणमन करने की योग्यता है, किन्तु परमाणु में शब्दरूप परिणत होने की शक्ति नहीं है, क्योंकि शब्द स्कन्धजन्य है। (पंचास्तिकाय गाथा ७९ )।
-जं. ग. 7-2-66/X/र. ला. जन, मेरठ
परमाणु माषावर्गणारूप स्कन्ध का कारण शंका-पंचास्तिकाय गाथा ७८ को टीका में आचार्य श्री अमृतचन्द्र सूरि परमाणु में शब्द को अव्यक्तरूप से भी नहीं मानते हैं। किन्तु गाथा १ की टीका में वे भी तथा आचार्य श्री जपसेन भी शक्तिरूप से शब्द का कारणभूत कहते हैं । इस सबका क्या तात्पर्य है ? इससे क्या यह सिद्ध नहीं होता कि परमाणु में शब्दरूप परिणमन करने की शक्ति है ?
समाधान-पंचास्तिकाय गाया ७६ में स्पष्टरूप से कहा है कि "सद्दो खंधप्पभवो, खंधो परमाणुसंग संघादो।" अर्थात् शब्द स्कंधजन्य है और स्कंध पुद्गलपरमाणुओं के समूह का संघात है । भाषावर्गणारूप स्कन्ध जिनमें शब्दरूप परिणमन करने की शक्ति है वे तो शब्द के अंतरंग कारण हैं जो समस्तलोक में व्याप्त हैं और तालु,
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