Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ६९७ धातु है जिसका अर्थ प्राप्त करना होता है । जो यथायोग्य अपनी-अपनी पर्यायों के द्वारा प्राप्त होता है या पर्याय को प्राप्त होता है वह द्रव्य' है ( सर्वार्थसिद्धि ५-२)। 'तत्व' में भाव की मुख्यता है और 'द्रव्य' में परिणमन की मुख्यता है। जीवपदार्थ जिसरूप से प्रवस्थित है उसका उसरूप से होना यह जीवतत्त्व है। जीवपदार्थ सतरूप है यह जीवद्रव्य है।
-प्. सं. 6-3-58/VI/ गु च. शाह, लश्करवाले तत्त्वचिन्तन में मन व इन्द्रियों का साहाय्य अपेक्षित है शंका-कर्मों से मलिन आत्मा क्या बिना द्रव्यमन के तत्त्वों का यथार्थ चितन कर सकता है ? मन तो जड़ पदार्थ है । वह तो चितन कर नहीं सकता है फिर उसके अभाव में तत्त्वों का चिंतन क्यों नहीं कर सकता है ?
समाधान-संसारी जीवों के ज्ञानावरण, दर्शनावरण और वीयाँतरायकों का उदय होने के कारण, उनके ज्ञान का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। ज्ञानावरणादि कर्मों के क्षयोपशम के कारण जितना भी ज्ञान लब्धिरूप से प्रगट होता है उसको उपयोगात्मक होने के लिए इन्द्रिय व मन की सहायता की आवश्यकता होती है, क्योंकि वह ज्ञान अपूर्ण होने के कारण कमजोर है । इसलिये श्री उमास्वामी आचार्य ने तत्त्वार्थसूत्र में कहा है
"तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तं ॥१॥१४॥ तं मतिपूर्व द्वयनेकद्वादशभेवं ।" उस मतिज्ञान के इन्द्रिय और मन निमित्तकारण होते हैं और श्रुतज्ञान मतिज्ञानपूर्वक होता है ।
इसका यह अर्थ नहीं है कि इन्द्रियां या मन पदार्थों को जानते हैं। आत्मा ही पदार्थों को जानता है, किन्तु जानने के लिये इन्द्रिय व मन को सहायता की प्रावश्यकता होती है । बिना इन्द्रिय व मन की सहायता के मतिज्ञान व श्रुतज्ञान जानने में असमर्थ हैं।
जिसप्रकार आँखें देखती हैं, किन्तु जब वे कमजोर हो जाती हैं तो उनको चश्मे की सहायता की प्रावश्यकता होती है। यह बात सत्य है कि देखती पाँख है चश्मा नहीं देखता, किन्तु बिना चश्मे के कमजोर आँख नहीं देख सकती। इसीप्रकार आत्मा भी पौद्गलिक इन्द्रिय व मन की सहायता के बिना मति व श्रुत ज्ञान द्वारा तत्त्वों को नहीं जान सकती।
ज.ग. 11-7-69/"| रो. ला. मित्तल सम्यक्त्व रहित आत्मा में भी कथंचित् जिनत्व है शंका-सम्यक्त्व रहित आत्मा में जिनत्व नहीं है, इसमें अनेकान्त क्या है ?
समाधान-सम्यक्त्वरहित आत्मा अर्थात् मिथ्याइष्टि बहिरात्मा में भी जिनत्व शक्तिरूप से तथा भावीनैगमनय की अपेक्षा व्यक्तिरूप से भी है। श्री वृहद्रव्यसंग्रह की संस्कृत टीका में कहा भी है
"मिथ्यादृष्टिभव्यजीवे बहिरात्मा व्यक्तिरूपेण तिष्ठति, अन्तरात्मापरमात्माद्वयं शक्तिरूपेण भाविनगमनयापेक्षया व्यक्तिरूपेण च । अभव्यजीव पूनहिरास्मा व्यक्तिरूपेण अन्तरात्मा परमात्माद्वयं शक्तिरूपेणव, न च भाविनंगमनयेनेति । यद्यभष्यजीवे परमात्मा शक्तिरूपेण वर्तते तहि कथममध्यस्वमिति चेत् ? परमात्मशक्त: केवलज्ञानादि. रूपेण व्यक्तिर्न भविष्यतीत्यमव्यत्वं, शक्तिः पुनः शुद्धनयेनोभयत्र समाना। यदि पुनः शक्तिरूपेणाप्यमव्यजीवे केवलज्ञानं नास्ति तदा केवलज्ञानावरणं न घटते।" गाथा १४ टीका।
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