Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
"स्थितिः कालसंहका तस्य पर्यायस्य सम्बन्धिनी वाऽसौ समयघटिकादिरूपा स्थिति सा व्यवहारकालसंहा भवति न च पर्याय इत्यभिप्रायः " द्रव्यसंग्रह गाया २१ टीका ।
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जो स्थिति है वह काल संज्ञक है। अर्थात् द्रव्य की पर्याय से सम्बन्ध रखनेवाली जो समय घड़ोआदिरूप स्थिति है; वह स्थिति ही व्यवहारकाल है, किन्तु पर्याय व्यवहारकाल नहीं है ।
प्रत्येक काला पृथक २ द्रश्य है अतः प्रत्येक कालाणु की पृथक्-पृथक् समयरूप पर्याय होती है। - जै. ग. 24-8-72 / VII / र. ला. जैन नहीं होता
समस्त पर्यायों में कालद्रव्य कारण शंका-क्या समस्त पर्यायों में कालद्रव्य कारण नहीं होता ?
समाधान - सर्व पर्यायों में कालद्रव्य कारण नहीं होता। जैसे जमव्यत्व पर्याय है तथा इसी तरह अन्य अनादि अनन्त पर्यायों में कालद्रव्य कारण नहीं होता । सादि श्रनन्तपर्यायों की स्थिति में कालद्रव्य कारण नहीं होता । कालद्रव्य का लक्षण वर्तना में कारणपना है, जो शुद्धद्रव्य में अगुरुलघुगुण के कारण होती है और मशुद्धद्रव्यों में बन्ध के कारण व काल के कारण होती हैं।
शंका-अन्य थ्यों के परिणमन में कालद्रव्य सहकारी कारण है, किन्तु कालद्रव्य के परिणमन में कौन सहकारी कारण है ?
- पत्र 21-4-80 / ज. ला. जैन, भीण्डर काल के परिणमन में सहकारी कारण काल है
जिसप्रकार ज्ञान को जानने के लिये अन्य ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि ज्ञान जिसप्रकार पर को जानता है उसीप्रकार अपने को भी जान लेता है, इसीलिये ज्ञान को दीपक के समान स्व-पर प्रकाशक कहा गया है। आकाशद्रव्य अन्य समस्त द्रव्यों को अवगाहन देता है और स्व को भी अवगाहन देता है, आकाश को अवगाहन देने के लिये अन्यद्रव्य की आवश्यकता नहीं होती है। इसीप्रकार काल भी धन्य द्रव्यों के परिणमन तथा अपने परिणमन में कारण है । कहा भी है
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न चैवमनवस्था स्यात्कालस्यान्यान्याव्यपेक्षणात् ।
स्ववृत्तौ तत्स्वभावस्यात्स्वयं वृशे प्रसिद्धितः ॥ १२ ॥ श्लोकवार्तिक ५१२२
यदि कोई यों कहे कि धर्मादिक की वर्तना कराने में कालद्रव्य साधारण हेतु है और कालद्रव्य की वर्तना में भी वर्तयिता किसी अन्य द्रव्य की आवश्यकता पड़ेगी और उस धन्य द्रव्य की वर्तना करने में भी द्रव्यान्तरों की आकांक्षा बढ़ जाने से अनवस्था दोष होगा ? ग्रन्थकार कहते हैं-हमारे यहाँ इस प्रकार अनवस्था दोष नहीं आता है, क्योंकि काल को अन्य द्रव्य की व्यपेक्षा नहीं है, अपनी वर्तना करने में उस काल का वही स्वभाव कारण है, क्योंकि दूसरों के वर्तन कराने के समान कालद्रव्य की स्वयं निज में वर्तना करने की प्रसिद्धि हो रही है। जैसे आकाश दूसरों को अवगाह देता हुआ स्वयं को भी भवगाह दे देता है तथा ज्ञान अन्य पदार्थों को जानता हुआ भी स्वयं को जान लेता है। श्लोकवार्तिक छठा खंड पृ. १६० १६१ ।
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- जै. ग. 7-1-71 / VII / रो. ला. मिचल
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