Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १०३९
करने पर समय सविभागी है। इसीप्रकार परमाणु भी सावयव भी है और निरवयव भी है। परमाणु का विभाग नहीं हो सकता इस अपेक्षा से निरवयव है, किन्तु दो परमाणुओं का परस्पर देशस्पर्श होता है, अन्यथा स्थूल स्कन्धों की उत्पत्ति नहीं बन सकती, इस अपेक्षा से परमाणु सावयव है। धवल पु० १३ पृ० २१-२४ ।
वाला हो सम्यग्दष्टि है जिसको किसी
- लै. ग. 7-8-67 / VII / शान्तिलाल
जैनधर्म का मूल सिद्धांत अनेकांत है। अनेकान्त का श्रद्धान करने भी विषय में एकांत का आग्रह है, वह मिध्यादृष्टि है।
काल की सत्ता है।
शंका- भावसंग्रह पृ० २०५ गाथा ३१६ के अर्थ में लिखा है कि कालद्रव्य सत्तारूप से नहीं है, इसलिये उसे अस्तिकाय भी नहीं कहते क्या जिन द्रव्यों की सत्ता मौजूद है यही अस्तिकाय द्रव्य हैं सो खुलासा करना ?
समाधान - भावसंग्रह गाथा २०५ निम्न प्रकार है
एयं तु वव्य छक्कं जिणेहि पंचत्थिकाइयं भणियं । वज्जिय कार्य कालो कालस्स पएसयं णत्थि ॥ ३१६ ॥
पृ० २०५ पर अर्थ इसप्रकार लिखा है - " इसप्रकार भगवान जिनेन्द्रदेव ने छहद्रव्यों का स्वरूप कहा
है । इन छहों द्रव्यों में से काल को छोड़कर शेष पाँचद्रव्य अस्तिकाय कहलाते हैं। जिनकी सत्ता हो उनको अस्तिकहते हैं और जो काय व शरीर के समान अनेक प्रदेशवाला हो उसको काय कहते हैं । जीव, पुद्गल, धर्मं, प्रधर्म और आकाश ये पाँचों द्रव्य बहुप्रदेशी हैं इसलिये अस्तिकाय कहलाते हैं। काल के प्रदेश नहीं हैं वह एक ही प्रदेशी है इसलिये अस्तिकाय नहीं कहते हैं।"
यहाँ पर 'काल की सत्ता नहीं है' ऐसा नहीं कहा है किन्तु 'वह एक ही प्रदेशी है' इससे काल की सत्ता स्वीकार की गई है, किन्तु बहुप्रदेशी न होने के कारण इस को काय नहीं कहा गया है।
'काल अस्तिकाय नहीं है' इन शब्दों से शंकाकार को भ्रम हो गया है। किन्तु काल एक ही प्रदेशी है इससे काल की सत्ता स्वीकार की गई है ।
- जै. ग. 12-6-69 / VII / रो. ला मित्तल
प्रत्येक कालाणु की पृथक्-पृथक् समयरूप पर्याय होती है
शंका- 'समय' पर्याय कालाओं की एक समयवर्ती दशा का ही नाम है या और कुछ ? क्या वह प्रत्येक कालाच पृथक २ पर्याय होगी ?
समाधान - कालाणु की समयरूप पर्याय है और समयरूप पर्याय की जो स्थिति है, वह समयरूप व्यवहारकाल है। पंचास्तिकाय गाया २६ की टीका में कहा है
"समयस्तावत्सूक्ष्मकालरूपः प्रसिद्धः एव पर्यायः न च द्रव्यं कथं पर्यापत्वमिति चेत् ? उत्पन्नप्रध्वंसित्वा पर्यायस्य समओ उत्पन्न पद्ध ंसीति वचनात् ।"
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समय सबसे सूक्ष्मकालरूप प्रसिद्ध एक पर्याय है, वह द्रव्य नहीं है। उत्पन्न होना और विनाश होना पर्याय का लक्षण है। समय भी उत्पन्न होता है और विनाश होता है। इसलिये पर्याय है।
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