Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
सम्यग्दर्शनशुद्धा
नारकतिर्यङनपुंसकस्त्रीत्वानि ।
दुष्कुल विकृताल्पायुर्दरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यव्रतिकाः ।। ३५ ।। ( रत्नकरण्ड श्रावकाचार ) निर्दोष सम्यग्दृष्टिजीव व्रतरहित होने पर भी नारक, तियंच, नपुंसक और स्त्रीपने को नीचकुल, विकलाङ्ग, अल्पायु तथा दरिद्रपने को प्राप्त नहीं होता है ।
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- जै. ग. 14-12-72 / VII / कमलादेवी श्राव तत्त्व का वर्तमान में भी किन्हीं के विनाश देखा जाता है।
शंका- धवल पु० ७ पृ० ७४ पर लिखा है कि मिथ्यात्व असंयम और कषायरूप आस्रवों का वर्तमानकाल में भी किसी जीव के विनाश देखा जाता है । वर्तमानकाल में तो मिथ्यात्व का भी क्षय नहीं होता। फिर किसप्रकार लिखा है ?
समाधान- धवल ७ पृ० ७३ पर यह बतलाया गया है कि - 'आसूव कूटस्थ श्रनादिस्वभाव वाला नहीं है, क्योंकि प्रवाहअनादिरूप से प्राये हुए मिथ्यात्व असंयम और कषायरूप आसूवों का वर्तमानकाल में भी किसी-किसी जीव में विनाश देखा जाता है । यहाँ पर यह नहीं कहा कि भरतक्षेत्र में वर्तमान में विनाश देखा जाता है । विदेहक्षेत्र में वर्तमान में भी मिध्यात्व असंयम और कषायरूप आसूवों का विनाश देखा जाता है ।' अतः उक्त कथन समीचीन है ।
- जै. ग. 17-4-69 / VII / र. ला. जैन
द्रव्यकर्म / भावकर्म
शंका- पुलजन्य कर्म दो प्रकार के माने हैं - ( १ ) द्रव्यकर्म और (२) भावकमं । जब भावकर्म भी पुदगल की ही पर्याय है तो वे चेतन व अमूर्तिक कैसे हो सकते हैं ? यदि वे भावकर्म चेतन व अमूर्तिक हैं तो स्पष्टतः जीवजन्य, जीव के ही भाव सिद्ध हुए । अतः जीव के भाव ( Feelings ) भावमात्र ही हो सकते हैं, उन्हें पुदगल अथवा पुद्गल की पर्याय कैसे कहा जा सकता है ? औवधिकभाव केवल जीव में उत्पन्न होते हैं अतः उनका कर्ता जीव ही है, तब वे पौगलिक कैसे हो सकते हैं ? पुद्गल जड़ पदार्थ में भाव ( Thoughts and Feelings ) कैसे सम्भव है ? भावकर्म पुद्गल किसप्रकार हैं ? भावकर्म की उत्पत्ति में उपादानकारण जीव है अथवा पुद्गल ? यदि जीब है तो रागद्वेषादि भाव जीव के कार्य अथवा भाव सिद्ध हुए। यदि पुङ्गलद्रव्यकर्म को उपादान कारण माना जावे तो पुगल द्रव्यकर्म साकार मूर्तिक व अचेतन जड़ होने से भावकर्म रागद्वेषादि भी मूर्तिक व अचेतन ही होने चाहिए। इन दोनों में से सत्य क्या है ?
समाधान - जैनागम में रागद्वेषरूप भावकर्म के विषय में अनेक विवक्षाओं से कथन है। शुद्ध निश्चयनय, अशुद्ध निश्चयनय, परम अथवा सूक्ष्मशुद्धनिश्चयनय, स्वभाव, विभाव, उपादान, निमित्त, भेद, अभेदादि । इन भिन्नभिन्न अपेक्षाओं की दृष्टि से भावकर्म पुद्गलकृत भी हैं, जीवकृत भी हैं, पुद्गल जीवकृत भी है अथवा नहीं है; चेतन अमूर्ति भी है और अचेतन मूर्तिक भी है । स्याद्वाद से एक को मुख्य करने से शेष कथन उसमें गौणरूप से रहता है, क्योंकि एकका मुख्यरूप से कथन करने पर शेष का अभाव नहीं होता-अवितानपित सिद्ध ेः ||३२|मो. शा. ऐसा तत्वार्थ सूत्र का वाक्य है। एकान्त से एकरूप मानकर अन्य का निषेध करना उचित नहीं है, क्योंकि वस्तु अनेकान्तात्मक है । राग-द्वेषरूप भावकर्म का उपादानकारण जीव है; अशुद्धनिश्चयनय से जीव इनका कर्ता है, ये जीव के स्वभाव नहीं हैं, किन्तु विभाव हैं । द्रव्य और पर्याय की अभेददृष्टि से ये भावकर्म चेतन अमूर्तिक हैं, क्योंकि जीव की अशुद्धपर्याय है ।
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