Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १०७९
आजायगा । 'जिसके अन्वय और व्यतिरेक के साथ नियम से जिसके अन्वय और व्यतिरेक पाये जायें वह उसका कार्य और दूसरा कारण होता है,' इस न्याय से मिथ्यात्वादिक ही बंध के कारण हैं ।
" सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते स बन्धः ।" त० सू० अ० ८ सू० २ । "कर्मणः इति हेतु निर्देश: कर्मणो हेतुर्जीवः सकषायो भवति, नाकर्मस्य कषायलेपोऽस्ति ।"
कर्मोदय से जीव कषाय सहित होता है । कषाय सहित होने से जीव कर्म के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है वह बंध है ।
मोहनीय कर्मोदय होने से जीव के रागादिभाव होते हैं और रागादिभाव होने से जीव नवीनकर्मों को ता है । इसप्रकार मोहनीय कर्मोदय बंध का कारण है अन्य कर्मोदय बंध के कारण नहीं हैं, क्योंकि ग्यारहवें आदि गुणस्थानों में अन्य कर्मोदय होने पर भी मोहनीय कर्मोदय न होने से बंध नहीं होता है । दसवें गुणस्थान तक मोहनीयकर्मोदय है जिससे रागादिभाव उत्पन्न होते हैं और कर्मबन्ध भी होता है ।
- जै. ग. 30-3-72 / VII / देहरा तिजारा
शुभोपयोग से बन्ध के साथ-साथ संवर- निर्जरा भी होते हैं
शंका- 'शुभोपयोग मात्र बंध का कारण है ।' क्या यह निश्चय का कथन है ?
समाधान - निश्चयनय की दृष्टि में जीव के न बन्ध है और न मोक्ष है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने श्री समयसार ग्रंथ में कहा भी है
जोवे कम्मं बद्ध पुट्टु चेदि ववहारणयभणिवं ।
सुब्रणयस्स वु जीवे अबद्धपुट्ठे हवइ कम्मं ॥ १४१ ॥
अर्थात् - जीव में कर्म बद्ध है तथा स्पर्शता है ऐसा व्यवहारनय का वचन है जीव कर्मों से बद्ध नहीं ऐसा निश्चयनय का वचन है ।
मुक्तश्चेत् प्राक्भवेदबन्धो नो बन्धो मोचनं कथम् । अबंधे मोचनं नैव मुचेरर्थो निरर्थकः ॥
यदि जीव मुक्त है तो पहले इस जीव को बंध अवश्य होना चाहिये, क्योंकि यदि बंध न हो तो मोक्ष कैसे हो सकता है ? इसलिये अबद्ध ( नहीं बंधे हुए ) की मुक्ति नहीं हुआ करती । उसके तो मुच् ( छूटने की वाचक ) धातु का प्रयोग ही व्यर्थ है । अर्थात् कोई जीव पहले बंधा हुआ हो फिर छूटे तब वह मुक्त कहलाता है, उसी प्रकार जो जीव पहले कर्मों से बंधा हो उसी की मोक्ष होती है ।
"बंधश्च शुद्ध निश्चयेन नास्ति तथा बंधपूर्वको मोक्षोऽपि । यदि पुनः शुद्ध निश्चयेन बंधो भवति तदासर्वदेवबंध एव मोक्षो नास्ति ।"
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शुद्धनिश्चयनय की अपेक्षा से बंध है ही नहीं, इसप्रकार शुद्ध निश्चयनय से बंधपूर्वक मोक्ष भी नहीं है । यदि शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा बंध होवे तो सदा ही बंध, होता रहे, मोक्ष ही न हो ।
अतः निश्चयनय की दृष्टि में 'शुभोपयोग बंध का कारण है' यह कथन संभव नहीं है ।
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