Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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१०२२ ]
[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
"वय॑ते वर्णमानं वा वर्णः स पञ्चविधः कृष्ण नील-पीत शुक्ल-लोहितमेवात्" ( स. सि. ५॥२३)
जिसका कोई वणं है या वर्णमात्र को वर्ण कहते हैं। काला, नीला, पीला, सफेद और लाल के भेद से वह वर्ण पांच प्रकार का है।
काला, नीला आदि वर्ण के भेद हैं, किन्तु रूप के भेद नहीं हैं, क्योंकि स्पर्शादि सामान्य परिणाममात्र को रूप कहते हैं । कहा भी है
'यत्स्पर्शाविसामान्यपरिणाममात्रं रूपं ।' ( समयसार गा० ५० को टीका ) इसप्रकार 'रूप' और 'वर्ण' पर्यायवाची नहीं हैं।
-ज. ग. 24-12-70/VII/ र. ला. जैन, मेरठ 'रूपादिक गुण अमूर्त हैं"; इसका अभिप्राय शंका-सर्वार्थ सिद्धि अ० १ सूत्र १७ की टीका में 'वे रूपादिक गुण अमूर्त हैं ? इसका क्या तात्पर्य है ? यदि रूपादिक गुण अमूर्त हैं तो रूपादिक का धारक पुद्गल मूर्त कैसे हो सकता है ?
समाधान-गुण का लक्षण इस प्रकार है"द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥४१॥ [ तत्त्वार्थसूत्र ५४१ ]
जो निरन्तर द्रव्य के आश्रय से रहते हैं और गुणों से रहित हैं वे गुण हैं। पुद्गल में 'मूर्त' एक पृथक्गुण है जिसके कारण पुद्गल मूर्त होता है। किन्तु पुद्गल के अंग रूपादिक गुणों में मूर्तगुण नहीं रहता, क्योंकि एकगुण में अन्यगुण नहीं रहते अन्यथा वह गुण भी एक स्वतन्त्रद्रव्य हो जायगा। इसकारण रूपादि गुणों को मूर्त नहीं कहा जा सकता। इसप्रकार रूपादि गुण मूर्त नहीं हैं अर्थात् अमूर्त हैं । ऐसा अभिप्राय प्रतीत होता है।
-प. ग. 25-3-76/VII/ 2. ला. जैन, मेरठ पुद्गल के भी कथंचित् अमूर्त स्वभाव है शंका-जैसे पुद्गल के सम्बन्ध से जीव को 'मूर्तिक' कहा गया है, क्या उसीप्रकार जीव के सम्बन्ध से पुद्गल को अमूर्तिक कह सकते हैं ?
समाधान-जीव के साथ बन्ध को प्राप्त हुमा सूक्ष्मकार्मणवर्गणारूप पुद्गल भी उपचार से अमूर्तिकभाव को प्राप्त कर लेता है । आलापपद्धति सूत्र २८ में २१ स्वभावों का नाम निर्देश किया गया है जिसमें १४ ३, १५३ क्रम पर मूर्त स्वभावः अमूर्तस्वभावः इन दो स्वभावों का नाम है। सूत्र २९ जीवपुगलयोरेकविंशतिः द्वारा यह कहा गया है कि जीव और पुद्गल इन दोनों द्रव्यों में २१ स्वभाव हैं । अर्थात् जीव में भी मूर्त-अमूर्त दोनों स्वभाव हैं। पुद्गल में भी मूर्त-अमूर्त दोनों स्वभाव हैं । आलापपद्धति ग्रन्थ के नययोजना अधिकार सूत्र १६६ में 'पुद्गल के उपचार से प्रमूर्तत्व स्वभाव' कहा गया है। पुद्गलस्योपचारादेवास्त्यमूर्तत्वम् ।
-पताचार | ज. ला. जैन, भीण्डर
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