Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार : क्रमवतिनः पर्यायाः ॥९२॥ ( आलापपद्धति ) क्रमभाविनः पर्यायाः ( नयचक्र पृ. ५७ ) शब्द स्कन्धरूप पर्याय है, जैसा कि श्री कुदकुवाचार्य ने पंचास्तिकाय में कहा है
सद्दो खंधप्पभवो, खंधो परमाणुसंगसंघादो।
पट्ठसु तेसु जायदि, सद्दो उप्पादिगो णियदो ॥७९॥ श्री अमृतचन्द्राचार्य कृत टीका-"इह हि बाह्य आवरणेन्द्रियावलम्बितो भावेन्द्रियपरिच्छेद्यो ध्वनिः शब्दः। स खलु स्वरूपेणानंतपरमारनामेकस्कंधो नाम पर्यायः।"
श्री जयसेनाचार्य कृत टीका-"द्विविधा स्कंधा भवन्ति भाषावर्गणायोग्या ये तेऽभ्यंतरे कारणभूताः सूक्ष्मास्ते च निरंतरं लोके तिष्ठन्ति, ये तु बहिरंगकारणभूतास्ताल्वोष्ठपुटव्यापारघंटाभिघातमेघावयस्ते स्थूलाः क्वापि क्वापि तिष्ठन्ति न सर्वत्र यनेयमुभयसामग्री समुदिता तत्र भाषावर्गणाः शब्दरूपेण परिणमन्ति न सर्वत्र।"
यहाँ पर यह बतलाया गया है कि शब्द स्कन्ध-प्रभव है अर्थात् भाषावर्गणारूप स्कंध की पर्याय है और अनन्तपरमाण प्रों के परस्पर बंध होने पर प्रर्थात् एकीभाव को प्राप्त होने पर भाषा-वर्गणारूप स्कंध होता है. क्योंकि 'एकीभावो बन्धः' एकीभाव को प्राप्त होना बंध है ये भाषा वर्गणायें संसार में सर्वत्र तिष्ठ रही हैं। किन्तु भाषावर्गणा को शब्दरूप परिणमाने में बहिरंग कारण ओंठ आदि का व्यापार तथा घंटा आदि का हिलना व मेघादिक का संयोग लोक में सर्व ठिकाने नहीं है, कहीं-कहीं पर है। जहां पर यह बहिरंग कारण मिलता है वहाँ पर ही भाषावर्गणा शब्दरूप परिणम जाती है।
आदेसमेत्तमुत्तो घादुचतुक्कस्स कारणं जो दु।
• सो ऐओ परमाणू, परिणामगुणो सयमसहो ॥७॥ परमाण आदेशमात्र से मूर्त है, चार धातुनों का (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि ) कारण है, परिणमन स्वभाववाला है (वणं से वर्णान्तर, रस से रसान्तर इत्यादि) और स्वयं अशब्द है ( भाषावर्गणारूप स्कंध न होने से परमाण शब्दरूप नहीं परिणम सकता )
अपदेसो परमाणु पदेसमेतो ये सयमसद्दी जो ॥ १६३ ॥ [ प्रवचनसार ] संस्कृत टीका-"स्वयमनेक परमाणुद्रव्यात्मकशब्दपर्यायव्यक्त्यसंभवादशब्दश्च ।"
परमाण अप्रदेशी है तथा प्रदेशमात्र है और अनेक परमाण द्रव्यात्मक स्कंधरूप शब्द पर्यायरूप स्वयं परिणमन न होने से अशब्द है।
परमाण रूप पर्याय में भाषावर्गणारूप स्कन्धपर्याय का अभाव होने से परमाणु स्वयं अशब्द है।
-ज. ग. 6-7-72/IX/र. ला. जन शब्द गुण नहीं है, किन्तु पर्याय है शंका-शब्द को यदि गुण माना जाय तो क्या यह योग्य नहीं है ?
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