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शब्दार्थ
जावंत केवि -- जो कोई भी ।
साहू - साधु | भरहेरवय-महाविदेहे
भरत,
ऐरावत और महाविदेह क्षेत्रमें !
६०
अ- और ।
सव्वेसि सि - उन सबको ।
पणओ - नमन करता हूँ । तिविहेण करना, कराना और अनुमोदन करना इन
तीन
प्रकारोंसे ।
तिदंड - विरयाणं- जो तीन दण्डसे विराम पाये हुए हैं,
उनको ।
अर्थ- सङ्कलना
भरत - ऐरावत और महाविदेह क्षेत्रमें स्थित जो कोई भी साधु मन, वचन और कायसे पाप-प्रवृत्ति करते नहीं, कराते नहीं, साथ ही करते हुएका अनुमोदन नहीं करते, उनको में नमन करता हूँ । सूत्र-परिचय
मूल
तिदंड - मनसे पाप करना वह
मनोदण्ड, वचनसे पाप
करना वह वचनदण्ड और
कायसे पाप
करना वह
कायदण्ड ।
इस सूत्र का उपयोग सर्व साधुओंको वन्दन करनेके लिये होता है और आशयकी शुद्धि करनेवाला होनेसे इसने प्रणिधानत्रिक में स्थान प्राप्त किया है ।
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१६ पञ्चपरमेष्ठि- नमस्कार - सूत्रम् [' नमोऽर्हत् ' -सूत्र ]
नमोऽर्हत्-सिद्धाचार्योपाध्याय - सर्वसाधुभ्यः || १ ||
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