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३३ धन्यकुमार :-इनके पिताका नाम धनसार और माताका नाम शीलवती था। इन्होंने अपने बुद्धिबलसे अक्षय लक्ष्मी उपाजित की थी। कालान्तरमें अपनी आठ पत्नियों का त्याग करके अपने साले शालिभद्रके साथ दीक्षा ग्रहण की और उग्र तपश्चर्या की।
३४ इलाचीपुत्र :-ये श्रेष्ठि-पुत्र होते हुए भी एक नटकी पुत्रीके मोहमें पड़ गये और उसके साथ विवाह करनेके लिये नटकी इच्छानुसार नट बने थे। अपनी अद्भुतकलासे राजाको प्रसन्न करनेके लिये एक बार ये बेन्नातट नगरमें गये । वहाँ बांस और रस्सीपर चढ़कर अद्भुत खेल करने लगे, किन्तु नटपुत्री को देखकर मोहित बना हुआ राजा प्रसन्न नहीं हुआ । इतने में दूर एक मुनिको देखा। उन्हें एक रूपवती स्त्री भिक्षा दे रही थी, किन्तु वे ऊँची दृष्टि करके भी उसको नहीं देख रहे थे। यह देखकर इन्हें वैराग्य हुआ। और वैसी ही भावना करनेसे वहीं केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
३५ चिलाती-पुत्र:-चिलाती नामकी दासीके पुत्र । ये पहले एक सेठके यहाँ नौकरी करते थे, पर सेठने अपलक्षण देखकर इनको निकाल दिया, तब ये जङ्गलमें जाकर चोरोंके सरदार बने । इनको सेठकी सुषमा नामक पुत्री पर मोह था; इससे एक बार सेठके घर डाका डाला और पुत्रीको उठा ले गये । अन्य चोरोंने दूसरा धन-माल लूटा। इतने में कोलाहल होनेसे राज्यके सिपाही आ पहुँचे। उनके साथ सेठ तथा सेठके पाँचों पुत्रोंने पीछा किया। तब अन्य चोर धन-माल मार्ग में छोड़कर भाग गये। सिपाही वह धन लेकर लौट गये, पर चिलातीने सुषमाको नहीं छोड़ा और वह जङ्गलमें चला गया। सेठने अपने पुत्रोंके साथ उसका बराबर पीछा किया । जब समीप आ गये, तो उनको देखकर चिलातीने सुषमाका सिर काट लिया और धड़ वहीं पड़ा रहने दिया। सेठ उसको देखकर रुदन करता हुआ वापस लौट आया। चिलातीपुत्रको अब कुछ शान्ति मिली। धीरे-धीरे वह जङ्गलमें चलने लगा। वहाँ एक मुनिको
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