Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 624
________________ .६०७ १८ धर्म, अर्थ और काम इन तीनों वर्गों को साधना। १९ अतिथि और गरीब आदिको अन्नपानादि देना। २० निरन्तर अभिनिवेश रहित रहना। किसीको पराभव करने की इच्छा करके अनीतिके कार्यका आरम्भ नहीं करना । २१ गुणी पुरुषोंका पक्षपात करना-उनका बहुमान करना। २२ निषिद्ध देश कालका त्याग करना। राजा तथा लोकद्वारा निषेध किये हुए देश कालमें जाना नहीं। २३ अपनी शक्तिके अनुसार कार्यका आरम्भ करना । २४ पोषण करने योग्य जैसे कि माता-पिता-स्त्री-पुत्रादिका भरण-पोषण करना। २५ व्रतसे युक्त और ज्ञानमें बड़े ऐसे पुरुषोंका पूजन करना-सन्मान करना। २६ दीर्घदर्शी बनना-कोई भी कार्य करने से पूर्व दीर्घदृष्टि डालना, . उसके शुभाशुभ परिणामका विचार करना। २७ विशेषज्ञ होना। प्रत्येक वस्तुको वास्तविकता समझकर अपने आत्माके गुणदोषोंकी खोज करना। २८ कृतज्ञ होना-किये हुए उपकार और अपकारका समझनेवाला - होना। २९ लोकप्रिय बनना-विनयादि गुणोंसे लोकप्रिय बनना। ३० लज्जालु होना-लाज और मर्यादामें रहना। ३१ दयालु बनना-दयाभाव रखना । ३२ सुन्दर आकृतिवान् बनना-कर आकृतिका त्याग करके सुन्दर आकृति रखनी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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