Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 634
________________ पृष्ठ पंक्ति २०१ १२ २११ ७ २१२ १४ अशुद्ध करता है। दितु सुह मनककुमार २१५ २३३ ८ ४ शुद्ध करे। दितु सुहं मनककुमार, कालिकसूरि, शाम्बकुमार, प्रद्युम्नकुमार बुद्धि हो' संमतिसे को थी यह भी बताया। तवो भासा परोवयारो प्रकारके W २४२ , वृद्धि हो' आज्ञासे की थी तओ भाषा परोवयरो प्रचारके बत्तीश नमूं तीजे सौ बहोत्तर एकसौ ७ ११ बत्रीस नमुं बीजे १४ बहोंतेर एकसो सो सातसे सवि एकसो साठ सातस सब एकसो आठ बत्तीस त्रणसै साठ " २४७ __, २४८ बत्रीसें २० १ २ २ त्रणसे आठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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