Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 632
________________ .. पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ६३ ६ विही वि-भी , ७ संथुआ संथुओ , १७ तुह-आपका तुह-आपके भी अपनी बोधि-अपना सम्यक्त्व बोधि-सम्यक्त्व निरवसग्ग निरुवसग्ग १०५ १२ सभिंतरे सभिंतर तं किंचि जं किंचि कारण हुई। कारण हुई। आसायणारु-आशातनासे ११५ १५ खामेसि खामेमि ११६ २३ तेजकाय तेउकाय ११७ १ वायुकाय वाउकाय , १९ लेनेके देनेके ११९ २१ लेनेके देनेके १२० १८ तहे तह अम्यन्तर अभ्यन्तर १२२ ६ कारणे करणे ० मिदिएहि • मिदिएहिं १२५ १७ सामयिक सामायिक आयरिय आयरियं १३२ १५ अणुव्वये अणुव्वए अणुव्वेय अणुव्वए १४३ २२ सच्चित्त सच्चित्ते , २३ चउत्थ चउत्थे ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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