Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 639
________________ पृष्ठ ४९९ पंक्ति १ अशुद्ध दहिना चडविहार पडिलेहादेमि स्त्रबके rand' « and not ५०७ ९ ५०९ ४ ५२० २० ५२१ ६ ५२५ ३ ५२८ २१ ५३४ ११ ५४३ ९ ५४५ २२ हास-सुत्त परठनकर उपाधि-महपत्ती परिवर्तना दो पड़ी वीतराय शुद्ध दाहिना चउविहार पडिलेहावेमि सबके हाण-सुत्त परठवकर उपधिमुहपत्ती परावर्तना दो घड़ी वोयराय झुकाते श्रीवर्धमानस्वामीकी बारह राज पूजो m झुकाये , १६ श्रीवर्धनानस्वामीको बाहर राम पूछो एले सुन (न) खोली साधना मोले . एळे ५४८ ५४९ ५५० Ko . . . . xnn निज निज ५५१ ९ ५५१ १० ५५२ २ सुम खीली साधतां सोले जन जिन खाण मलिया जाणो । कोडी खाय ललिया जणो कोडो : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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