________________
पृष्ठ ५६०
पंक्ति ७
अशुद्ध वाखण समाणो मरुदेवीनां
शुद्ध वखाण समाणी मरुदेवीना अन्धो अन्ध ठाय
५६१. १८
५६३
अन्ध
ढाय
दूरे
vr r 222
,
५६८ १० " १४
धीग प्रतिषे अमियमरी नचीरे मेवना जूठा तेव रे वृत्त सन्ति महाराजने सुगुबु उरवाणो दाधां धरियो छु ग्रहियो छु डरीयो छु विवेक सघपति वचण नेमजी
धींग प्रतिषेध अमियभरी रचीरे सेवना जूठो सेव रे वृत्ति शान्ति महाजने सुगुरु उखाणो दीधां धरियो छे ग्रहियो छे डरियो छे विवेके संघपति वयण
,
१९
५७०
५७२ १२ ५७३ ११
५७३ १२ ५८० २४ ५८७, ५ ५९२ १४ . , १५
जेमजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org