Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 631
________________ शुद्धिपत्रक पृष्ठ १४ ,, २० २२ २७ पंक्ति ४ ११ ७ १२ १० अशुद्ध इच्छाकार इच्छाकार कम्माण अरिहंताण कित्तिइस्स कमको वाचक जयतु विहुं जगननाह करो ऐरावत ऐरावत सारहीण मुत्ताण सिद्ध सिद्धगति रहते हुए रहते हुए रहते हओंका ऐरावत ऐरावत शुद्ध इच्छकार इच्छकार कम्माणं अरिहंताणं कित्तइस्सं कर्मको वाचिक जयंतु बिहुँ जगहनाह करोड़ ऐरवत ऐरवत सारहोणं मुत्ताणं सिद्धि सिद्धिगति रहता हुआ रहता हुआ मैं रहे हुओंको ऐरवत ४६ AVM 9102. 2m 27m १२ ५९ ५ ऐरवत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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