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करना वह भक्त-नियम । इस व्रतका पालन स्व-अपेक्षासे करना चाहिये। कुटुम्ब या ज्ञाति आदिके निमित्तसे घरपर आहारादि बनाने पड़े तो, उसकी इसमें छूट है। __ तदुपरान्त निम्नलिखित नियम भी अधिक धारण किये जाते हैं :
१ पृथ्वीकाय-मिट्टी कितनी वापरनी। .
२ अपकाय-पीने, नहाने, धोने आदिमें कुछ कितना पानी वापरना।
३ तेउकाय-चूला, दीपक, भट्ठी, सिगड़ी आदि कितने उपयोगमें लेना।
४ वायुकाय-पंखे आदिका कितना उपयोग करना।
५ वनस्पतिकाय-वनस्पतिकी कितनी वस्तुओंका उपयोग करना।
१ असि-तलवार, छुरी, चाकू आदि कितने हथियार वापरने ।
२ मषी-दावात, कलम, कूची, होल्डर, बरू, पेन्सिल आदि कितने वापरने ।
३ कृषि-हल, हँसिया, आदि खेती के औजार कितने वापरने।
इन प्रत्येक वस्तुका प्रात: नियम धारण किया हो, उसका सायङ्कालको विचार करना। उनमेंसे यदि नियमके अतिरिक्त उपयोग हुआ हो तो गुरु महाराजके पास आलोचना कर आज्ञानुसार प्रायश्चित्त करना । नियमानुसार उपयोग हुआ हो, तो वह विचार लेना और थोड़ी वस्तु वपरायो हो, तो शेष नहीं वपरायी हुई
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