Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 623
________________ ६०६ ७ जिस घर में प्रवेश और निर्गमन निकलने के मार्ग अनेक न हों तथा जो घर अति गुप्त और अति प्रकट न हो और पड़ोसी अच्छे न हों ऐसे घर में नहीं रहना । - ८ अच्छे आचरणवाले पुरुषोंकी संगति करनी । ९ माता तथा पिताकी सेवा करनी-उनका सर्व प्रकारसे विनय करना और उनको प्रसन्न रखना । १० उपद्रववाले स्थानका त्याग करना - लड़ाई दुष्काल आदि आपत्तिजनक स्थान छोड़ देना । ११ निन्दित कार्य में प्रवृत्त नहीं होना - निन्दाके योग्य कार्य नहीं करने । १२ आवक के अनुसार खर्च रखना । आमदानी के अनुसार खर्च करना । १३ धनके अनुसार वेश रखना । आमदानी के अनुसार वेशभूषा रखनी । १४ आठ प्रकार बुद्धिके गुणों का सेवन करना । गुणों के नाम: १ शास्त्र सुनने की इच्छा । २ शास्त्र सुनना । ३ उनका अर्थ समझना । ४ उनको याद रखना । ५ उनमें तर्क करना । ६ उनमें विशेष तर्क करना । ७ सन्देह नहीं रखना । ८ यह वस्तु ऐसी ही है, ऐसा निश्चय करना । १५ नित्य धर्मको सुनना । ( जिससे बुद्धि निर्मल रहे । ) १६ पहले किया हुआ भोजन पच जाय, तब नया भोजन करना । १७ जब सच्ची ( वास्तविक ) भूख लगे तब खाना, किन्तु एकबार खा लेनेके बाद शीघ्र ही मिठाई आदि आयी हुई देख कर लालच से खानी नहीं, क्यों कि अजीर्ण हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only उन आठ www.jainelibrary.org

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