Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 621
________________ ६०४ हां रे में तो पूरब पुण्ये पाया, हां रे देख्यो तेरो देदार प्राणजीवन परमेश्वर प्रभु प्यारो, हां रे प्रभु सेवक हूं छं तारो । हां रे भवोभवनां दुखडां हां रे तुमे दीनदयाल वारो, · 37 · 114 11 अ॥ ४ ॥ सेवक जाणी आपनो चित्त धरजो, हां रे मारी आपदा सघळी हरजो । हां रे मुनिमाणेक सुखियो करजो, हां रे जाणी पोतानो बाल''''अ''''।। ६ । ( २९ ) मङ्गल - दीपक ( १ ) दीवो रे ! दीवो मंगलिक दीवो । आरती उतारण बहु चिरं जीवो; दीवो रे ! ॥ १॥ सोहामणुं घर पर्व - दीवाली | अम्बर खेले अमराबाली, दीवो रे ! ॥ २ ॥ देपाल भणे एणे कुल अजुआली । भावे भगते विघ्न निवारी; दीवो रे ! ॥ ३ ॥ देपाल भणे इणे ए कलिकाले । आरती उतारी राजा कुमारपाले; दीवो रे ! ॥ ४ ॥ अम घर मंगलिक तुम घर मंगलिक । मंगलिक चतुर्विध संघने होजो, दीवो रे ! ॥ ५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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