Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 620
________________ ६०३ पहेली आरती पूजा कीजे, नरभव पामीने ल्हावो लीजे.."जय ! जय ! ! ॥ १ ॥ दूसरी आरती दोन-दयाला, धूलेवमण्डन प्रभु जग-उजियाला""जय ! जय !!। तीसरी आरती त्रिभुवन देवा, सुर-नर-इन्द्र करे तोरी सेवा जय ! जय ! ! ॥ २ ॥ चौथी आरती चउगति चरे, मनवांछित फल शिवसुख पूरे "जय ! जय !!। पंचमो आरती पुण्य-उपाया, सूलचन्द रिखव-गुण गाया 'जय ! जय !! ॥ ३ ॥ (२) अपसरा करती आरती जिन आगे, हां रे जिन आगे रे जिन आगे। हां रे ए तो अविचल सुखडां मागे, हां रे नाभिनन्दन पास""अ"॥ १ ॥ ता थेइ नाटक नाचती पाय ठमके, हां रे दोय चरणमां झांझर झमके । हां रे सोवन घुघरडी घमके, हां रे लेती फुदडो बाल"अ"॥ २ ॥ ताल मृदंग ने वांसली डफ वीणा, हां रे रूडा गावंती स्वर झीणा। हां रे मधुर सुरासुर नयणां, हां रे जोती मुखडं निहाल अ॥ ३ ॥ . धन्य मरुदेवा माताने पुत्र जाया, हां रे तोरी कंचन वरणो काया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -

Loading...

Page Navigation
1 ... 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642